पुरी दुनिया के साथ साथ भारत भी डिजिटलाइजेशन की तरफ बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है. इससे जहां लोगों को घर बैठे अनेक सुविधाएं मिल रही हैं. तो वहीं डिजिट क्राइम या साइबर क्राइम भी बड़ी तेजी से बढ़ रहा है.
इलेक्ट्रॉनिक उपकरण इस्तेमाल करने वाला हर व्यक्ति को इसका खतरा बना रहता है. हालांकि डिजिटलाइजेशन और फॉरेंसिक साइंस के सही प्रयोग से अपराध पर लगाम लगाने में भी कामयाबी मिल सकती है.
इसी विषय को लेकर शिमला एचपीयू में दो दिवसीय डिजिटल अपराधों और फॉरेंसिक में उभरती प्रवृत्तियों को लेकर शिमला विश्व विद्यालय के फॉरेंसिक विभाग और क्षेत्रीय फोरेंसिक साइंस लैबोरटी नॉर्थन रेंज धर्मशाला द्वारा राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है.
सम्मेलन का शुभारंभ राज्यपाल राजेंद्र विश्व नाथ आर्लेकर ने किया. इस मौके पर राज्यपाल राजेंद्र विश्व नाथ आर्लेकर ने कहा कि आज का युग डिजिटल युग है. हर व्यक्ति किसी न किसी माध्यम से इससे जुड़ा हुआ है. इसलिए लोगों को इसके सही प्रयोगों की जानकारी होना आवश्यक है.
राज्यपाल ने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरण सूचना के साथ साथ अपराध का स्त्रोत भी बन गया है. डिजिटल और फोरेंसिक साइंस का सही हाथों में होना जरूरी है. अब तो क्रिप्टोकरंसी पर भी चर्चा शूरू हो गई है. लेकिन क्रिप्टोकरंसी का क्या फायदा या नुकसान है. इस पर भी मंथन होना जरूरी है.
राज्यपाल ने कहा कि फोरेंसिक साइंस हिमाचल प्रदेश के बॉर्डर एरिया जिनकी सीमाएं दूसरे देशों से लगती है. वहां पर वाइब्रेंट गांव में सर्विलांस के रूप में इस्तेमाल हो सकती हैं. सीमाओं की देखरेख और सुरक्षा के लिहाज से इसको इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
हालांकि सरकार सीमा ओत्की सुरक्षा को लेकर पहले ही काफी गंभीर है. लेकिन फोरेंसिक साइंस भी इसके लिए कारगर साबित हो सकती है. सम्मेलन से जो रिपोर्ट बनेगी उसे भारत सरकार से भी सांझा किया जा सकता है. ताकि भविष्य के लिए रोड मैप बनाया जा सके.
सम्मेलन आज और कल दो दिन तक चलेगा जिसमें कई डिजिटल और फोरेंसिक साइंस विशेषज्ञ हिस्सा लेंगे और डिजिटल क्राइम और फोरेंसिक साइंस की चुनौतियों को लेकर विचार सांझा करेगें.