हाईकोर्ट में चल रहे प्रदेश में भांग की खेती को कानूनी मान्यता प्रदान करने के मामले में न केंद्र और न ही राज्य सरकार ने जवाब दायर किया। इस कारण इस मामले पर सुनवाई 21 मई तक के लिए टल गई। हाईकोर्ट ने 8 जनवरी को पारित आदेशों में केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह के भीतर मामले उनसे अपना रुख स्पष्ट करने के आदेश दिए थे। हाईकोर्ट ने दोनों सरकारों को अपना जवाब देने के लिए 4 सप्ताह का अतिरिक्त समय दिया है।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता देशिन्देर खन्ना ने याचिका दायर कर इन पदार्थों की खेती पर लगाई गई रोक को हटा कर इसे कानूनी मान्यता देने की गुहार लगाई है। हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के बाद सरकार के वन और स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव, बायोडायवर्सिटी विभाग के निदेशक और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को प्रतिवादी बनाते हुए 4 सप्ताह में इनसे जवाब तलब किया था।
प्रार्थी का कहना है कि दवाई के लिए उपयोग की दृष्टि से ग्रामीण क्षेत्रों में भांग की खेती को कानूनी मान्यता प्रदान करके किसानों की आर्थिक हालत और युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी की समस्या से निदान पाया जा सकता है। भांग के पौधों को जलाने से उत्पन्न होने वाली पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को भी खत्म किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि जनहित के दृष्टिगत यह जरूरी हो जाता है कि इस पदार्थ का दवाइयों के लिए प्रयोग किया जाए। यह पदार्थ असाध्य रोगों जैसे कैंसर और न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। इसे नेशनल फाइबर पॉलिसी 2010 के अंतर्गत लाया जा सकता है।
वहीं, प्रार्थी की ओर से न्यायालय को यह बताया गया कि इन पदार्थों पर किए गए अनुसंधान के पश्चात इसके उपयोग बारे नशे के प्रचलन को खत्म करते हुए इस को मेडिसिन की तौर पर उपयोग में लाया जाने लगा है।