शिमला में सड़क सुरक्षा और यातायात प्रबंधन पर कार्यशाला आयोजित की गई। जिसकी अध्यक्षता परिवहन मंत्री गोविन्द सिंह ठाकुर ने की। ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में सड़क सुरक्षा डंडे के जोर पर ही नहीं हो सकती है बल्कि इसके लिए सबका जागरूक होना जरूरी है। हिमाचल की सड़कों में क्रैश बैरियर लगाने और चालकों के प्रशिक्षण की जरूरत पर बल दिया जाएगा।
तेज़ रफ़्तार पर अंकुश लगाना, वाहन चलाते समय मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल पर रोक जैसे फैसले दुर्घटनाओं को कम कर सकते हैं। गोविंद ठाकुर ने कहा कि सड़क सुरक्षा को लेकर न्यायालय के आदेशों का सख्ती से पालन किया जाएगा।
यही वजह है कि सड़क सुरक्षा से जुड़े सभी स्टेक होल्डरों को बुलाया गया है। ताकि उनको जागरूक किया जा सके। हिमाचल में हादसों की वजहों की बात करें तो ब्लैक स्पॉट, सड़कों की खस्ता हालत, पैराफिट का न होना और कई बार मौसम की बेरुखी रहती है। इसके अलावा चालकों की लापरवाही, ओवरटेकिंग, लाइसेन्स में धांधलियां होना आदि भी सड़क हादसों को न्यौता देती देती हैं।
साल 2016-17 में सड़क हादसों में इतने लोगों ने गवाई जान
साल 2017 में हुए सड़क हादसों में गौर करें तो प्रदेश में औसतन हर दिन लगभग 9 सड़क हादसे होते हैं, जिनमें तीन लोग अपनी जान गंवा देते हैं। वर्ष 2017 के दौरान बिलासपुर जिले में 194, चंबा में 119, हमीरपुर में 120, कांगड़ा में 523, किन्नौर में 34, कुल्लू में 168, लाहुल-स्पिती में 25, मंडी में 423, शिमला में 480, सिरमौर में 306, सोलन में 252, ऊना में 291, और बद्दी में 178 सड़क हादसे हुए। प्रदेश में कुल 3114 सड़क हादसों में 1203 लोगों ने अपनी जान गंवाई जबकि 5452 लोग घायल हुए।
वहीं, साल 2016 में 3168 सड़क हादसे हुए, जिनमें 1271 लोगों को जान गंवानी पड़ी और 5 हजार 764 लोग घायल हुए। मरने वालों में बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक शामिल हैं, तो देशी-विदेशी पर्यटक भी मौत का शिकार हुए हैं।