विकास दुआ।।
उस बुजुर्ग महिला की उम्र 85 के पार तो होगी ही। चेहरों पर झुर्रियों की सलवटें इशारा कर रहीं थीं कि दादी अम्मा ने दुनिया के हर रंग को देखा होगा, हर तपिश झेली है। चश्में के भीतर से उनकी आंखें कुछ ख़ास बड़े आकार में एक जनसभा को देख रही थीं। आपको बताते चले कि इस जनसभा में हिमाचल के पूर्व मंत्री जीएस बाली लोगों को संबोधित कर रहे थे। बुजुर्ग की नज़रों के आगे खासा डिस्टर्बेंस था। लिहाजा, कभी दायें तो कभी बायें होकर वह नेता को देखने की कोशिश कर रही थीं।
उनकी एक-एक गतिविधि को मैं बड़े ही इत्मिनान से देख रहा था। आखिरकार उत्सकुता ऐसी हुई कि मैंने उनसे पूछ ही लिया। दादी क्या आप इन महानुभाव को जानतीं हैं? उनका तपाक से देसी भाषा में जवाब था— बाली है…। मैंने फिर पूछा बाली कौन है? उन्होंने एक टक मेरी तरफ ठहर कर देखा और बोली हमारा 'विधायक' है। हालांकि, उनकी नज़रें मेरी तरफ ठहर सी गई थीं। मुझे देख उनकी नजरों में मेरे प्रति संशय सी तैर गई थी। लिहाजा, मैंने भी अपने बेवकूफी वाले अंदाज में बातचीत को रोका और जगह बदल लिया। इस दौरान जीएस बाली के उस तर्क पर यकीन हो चला, जो उन्होंने एक साक्षात्कार में मुझसे कहा था कि जरूरी नहीं कि आप विधानसभा या संसद में बैठते हैं, जरूरी ये है कि आपने लोगों के दिलों में जगह बनाई है या नहीं।
जीएस बाली पहले की तरह पूरे जोश में अपने क्षेत्र का भ्रमण कर रहे हैं और लोगों के शिकवे-गिले दूर करते दिखाई दे रहे हैं। शनिवार को भी उन्होंने विधानसभा क्षेत्र के अलग-अलग हिस्सों का दौरा किया और लोगों की परेशानियां सुनीं। जीएस बाली ने शेराथाना, बलधर और ठारू में विशेष तौर पर शिरकत की। शेराथाना में एक जनसभा के बाद उन्होंने वहां की जनता को भंडारे के लिए 3100 रुपये का चंदा दिया। साथ ही बलधर मेंं भी 3100 रुपये भंडारे के लिए दिए।
पूर्व मंत्री ठारू भी पहुंचे। यहां पर उन्हें बॉलिबाल और कबड्डी के खेलों के समापन पर बतौर मुख्य अतिथि बुलाया गया था। यहां भी जीएस बाली ने युवाओं की डिमांड पर उन्हें खेल संबंधित चीजों के लिए 5000 रुपये का अनुदान दिया। साथ ही यहीं पर होने वाले मेले की कुश्ती के लिए भी दिल खोलकर चंदा दिया। बाली ने मेले की कुश्ती के लिए 5 हजार रुपये का सहयोग किया।
अब अगर जीएस बाली लगातार अपने क्षेत्र में दौरा करते हैं और लोगों की परेशानियां दूर करते हैं, तो किसको भ्रम नहीं होगा कि फिलहाल वो निर्वाचित सदस्य हैं भी या नहीं। क्योंकि, हमारे देश की राजनीतिक परंपरा ऐसी बड़ी कम रही है जब को नेता निर्वाचित ना होते हुए भी लोगों के बीच संघर्ष करता है।