भले ही सड़के पहाड़ी प्रदेश हिमाचल को भाग्य रेखाएं कहलाती हैं, लेकिन ये सर्पीली सड़कें दिन-प्रतिदिन मानवीय खून से रंग रही हैं। राज्य की खस्ताहाल तंग सड़कों पर कदम-कदम पर मौत का ख़तरा मंडरा रहा है। औसतन प्रतिवर्ष सड़कों पर 3000 सड़क हादसों में 1100 के करीब बेगुनाहों की जानें जा रही हैं। या यूं कहें कि औसतन हर माह 200 के करीब सड़क हादसों में 100 मौतें और 300 से ऊपर लोग अपंगता का दंश झेलने को मजबूर हो रहे हैं।
विभाग के सिस्टम और यमदूत द्वारा सड़कों पर लगाया गया नाका कदम-कदम पर वाहन चालकों तथा लोगों के लिए कब्रगाह साबित हो रहा है। यही वजह है कि सड़कों पर बैठे यमदूत औसतन हर दिन 3 जिंदगियों के प्राण हर रहे हैं। मानवीय खून से रंग रही सड़कों पर बिखरे दुर्घटनाओं के सबूत चाहे चालक और परिचालक की लापरवाही की गवाही देते हों, लेकिन यातायात का पाठ पढ़ाने वाले भी कर्तव्यों को पूरा करने में कोताही बरत रहे हैं।
समय रहते अगर लोक निर्माण विभाग और परिवहन विभाग ने ट्रैफिक विंग द्वारा किए गए सड़क सर्वे से सबक लिया होता तो एक बार फिर रोनाहट बस हादसा पेश न आता। विभाग की इस लापरवाही से शांत प्रदेश में प्रतिवर्ष हो रहे सड़क हादसों से हाहाकार मच रहा है। प्रदेश पुलिस के रेलवे ट्रैफिक विंग के रिकॉर्ड को खंगाला जाए तो अभी भी प्रदेश की सर्पीली सड़कों पर सरपट मौत दौड़ रही है। लेकिन इसी बीच सवाल ये है कि क्या परिवहन विभाग और लोक निर्माण विभाग के इन हादसों के प्रति गंभीर हैं भी या नहीं…?? और यदि हैं तो क्या कदम उठाएं जा रहे हैं…??