55 साल के ईश्वर दास के सीने में दर्द उठा। अपने बच्चों को आवाज लगाई की दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा है, जल्द अस्पताल ले चलें। आनन-फानन में परिजनों ने 108 नंबर पर फोन कर एंबुलेंस को बुलाया। एंबुलेंस घर के पास तक पहुंच भी गई। लेकिन, बामुश्किलन 300 मीटर रोड कच्चा था। लिहाजा, एंबुलेस चालक ने मरीज के घर तक जाने से मना कर दिया। इस लेट-लतीफी में काफी समय बीत गया और ईश्वर दास की मौत हो गई।
यह दुखद घटना बीते रविवार नगरोटा विधानसभा क्षेत्र के चाड़ी गांव की है। ईश्वर दास के बेटे ने समाचार फर्स्ट को बताया कि उनके पिता की जैसी हालत खराब हुई, उन्होंने 108 नंबर पर एंबुलेंस को फोन किया। समय रहते एंबुलेंस क्वाड़ी गांव तक पहुंच गई। लेकिन, उनके गांव तक कच्चा रास्ता होने की वजह से आने से मना कर दिया। इस दौरान गांव में ही साधन जुटाने में काफी देर हो गई। उन्होंने बताया कि जैसे ही वो अपने बीमार पिता को गांव के बाहर खड़ी एंबुलेंस के पास लेकर पहुंचे, उनकी मौत हो गई।
'डेड' डिक्लेयर किया और परिवार से करा लिए साइन
पीड़ित परिवार का कहना है कि एंबुलेस में मौजूद एक डॉक्टर ने डेड डिक्लेयर कर दिया। बाद में परिजन और उनके साथ गांव के कुछ लोगों ने शव को अस्पताल ले जाने से इनकार कर दिया। इसके बाद एंबुलेंस में सवार स्टाफ ने एक फॉर्म पर उनके साइन लिए और डिक्लेयरेशन में यह कबूल कराया कि परिजन अपनी मर्जी से शव को अस्पताल नहीं ले जाना चाहते।
परिजनों का कहना है कि वे दिहाड़ी मजदूरी कर अपना जीवन बसर करते हैं। उनकी इतनी ताकत नहीं है कि मामले में शिकायत करें और कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटें। यही वजह है कि उन्होंने कहीं भी इसकी शिकायत दर्ज नहीं कराई है। आस-पड़ोस के लोगों में भी इसे लेकर काफी गुस्सा देखा जा रहा है। लेकिन, लोग आर्थिक तंगी के चलते हार जा रहे हैं।
कच्ची सड़क का दो बार हो चुका है शिलान्यास
ग्रामीणों के मुताबिक जिस कच्ची सड़क पर एंबुलेंस ने जाने से इनकार किया। उस पर राजनीतिक छवि भी खूब चमकाई गई है। इस रोड के काम के लिए शिलान्यास पिछली सरकार में हुआ था। तब क्षेत्र के तत्कालीन विधायक एवं मंत्री जीएस बाली ने इसका शिलान्यास किया था। लेकिन, सरकार बदलने के बाद उनके फट्टे हटा दिए गए और नई सरकार में फिर से इसका शिलान्यास किया गया। इस दौरान इस सड़क पर सिर्फ शिलान्यास का ही खेल चला। नई सरकार में काम के मामले में कुछ भी प्रगति नहीं हुई।
गांव के लोगों का कहना है, "पिछली बार शिलान्यास के साथ ही सड़क का काम शुरू हुआ। लेकिन, नई सरकार बनने के बाद इसे रोका गया और दोबारा शिलान्यास किया गया। लेकिन, यहां अधिकारी और नेता अपनी छवि चमकाने में ज्यादा व्यस्त रहे और गांव की तरफ किसी ने नहीं देखा।"