अमेरिका ने हिमाचल को क्लोरोपिकरिन गैस देने से इंकार कर दिया है। प्रदेश के 4 लाख से ज्यादा बागवानों के लिए इसे झटके के तौर पर देखा जा रहा है। हिमाचल सरकार ने प्रथम चरण में 250 मीट्रिक टन क्लोरोपिकरिन गैस आयात करने का लक्ष्य रखा था। इसे ग्लोबल टैंडर के जरिए आयात किया जाना था।
अपनी तकनीक को जगजाहिर नहीं करना चाहता अमेरिका
केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद यह प्रस्ताव बीते साल ही केंद्रीय विदेश मंत्रालय के माध्यम से अमरीका को भेजा गया था, लेकिन अमरीका क्लोरोपिकरिन गैस के इस्तेमाल को लेकर अपनी तकनीक को जगजाहिर नहीं करना चाहता। इसलिए अमरीका ने हिमाचल सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। क्लोरोपिकरिन का प्रयोग सेब के पुराने बगीचों को काटकर नए बगीचे लगाने के लिए किया जाता है ताकि सेब के रोगमुक्त बगीचे तैयार किए जा सकें।
सेब के नए बगीचों को रोगमुक्त बनाती है क्लोरोपिकरिन
दरअसल सेब के पुराने बगीचे विभिन्न बीमारियों से युक्त हैं। इनमें तरह-तरह की बीमारियां पाई जाती हैं। इस वजह से जो बागवान पुराने पौधे काटकर नई प्लांटेशन कर रहे हैं, उनके नए पौधे नहीं चल पा रहे जबकि, हिमाचल सरकार खुद बागवानों को सेब के पुराने पौधे काटकर नई प्लांटेशन के लिए प्रेरित कर रही है ताकि प्रदेश के बागवान सेब के अंतर्राष्ट्रीय बाजार में प्रतियोगिता कर सके। यह देखते हुए सरकार ने 1134 करोड़ रुपये के बागवानी विकास प्रोजैक्ट के तहत क्लोरोपिकरिन गैस आयात करने का फैसला लिया था।
क्लोरोपिकरिन गैस का इस्तेमाल जमीन के नीचे पंप के माध्यम से किया जाता है। इसके इस्तेमाल से जमीन को स्टेररिलाइज किया जाता है। दावा किया जा रहा है कि इससे पुराने पौधों की बीमारी से युक्त जड़ें, फंगस और हानिकारण कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।