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‘दीपक तले अंधेरा’, IPH विभाग खुद के पानी की बर्बादी रोकने में नाकाम

नवनीत बत्ता |

'दीपक तले अंधेरा'  प्रदेश में जल आपूर्ति विभाग को लेकर अगर यह कहा जाए तो बिल्कुल भी गलत नहीं होगा। क्योंकि, एक तरफ तो विभाग के अधिकारी पूरे प्रदेश में लोगों को पानी बचाने की बात कहते नजर आ रहे हैं लेकिन, इसके विपरीत जब IPH विभाग के दफ्तरों का दौरा किया जाए तो वहां पर पानी की किस तरह बर्बादी हो रही है इसका स्पष्ट उदाहरण हमीरपुर के आईपीएच विभाग के कार्यालय में देखने को मिल जाएगा।

इसके साथ ही विभाग के कार्यालय में पानी की टंकियों की पाइप से दिन रात बेकार बहता पानी और उनमें फैली गंदगी को देखकर पता चलता है कि विभाग कितनी सजगता से अपना काम कर रहा है। हालांकि विभाग कई लोगों के पानी की पाइप यह कहकर काट देता हैं कि उनकी पाइप गंदी नाली में है।

किसी की पाइप काटने से 2 दिन पहले विभाग वहां पर पोस्टर चिपका देता हैं कि आपको सूचित किया जाता है कि आपकी पाइपलाइन काटी जा रही हैं। इस तरह की कार्यप्रणाली IPH विभाग हमीरपुर में इन दिनों चल रही है।

आंकड़ों की बात करें तो हिमाचल प्रदेश में जल आपूर्ति विभाग सिर्फ बिजली का बिल ही हर साल 500 करोड़ के आसपास भरता है जबकि पानी की आपूर्ति से होने वाली आय 30 से 35 करोड़ के बीच में है। इसके अलावा  शिमला और अन्य पहाड़ी जगह पर जहां 1 हजार लीटर पानी के लिए विभाग को 70 से 80 रुपये तक का खर्चा उठाना पड़ता है, वहीं निचले हिमाचल में 7 से 14 रुपये के बीच में इसको लेकर विभाग खर्चा उठाता है। इतना महंगा पानी सप्लाई करने के बाद भी विभाग पानी को बेस्ट होने से नहीं रोक पाने में नाकाम है जो अपने आप में ही चिंता का विषय है।

वहीं, आईपीएच विभाग के इंजीनियर इन चीफ अनिल ने बताया कि ग्रेविटी के हिसाब से पानी की कॉस्ट तय होती है और सिर्फ 33 करोड़ रुपया ही साल का विभाग को मिलता है जबकि, हमारा बिजली के बिल का खर्चा ही 500 करोड़ के आसपास रहता है। उन्होंने कहा कि अपने विभाग में ही पानी की लीकेज दिखाई देगी तो दूसरे लोगों को हम लोग क्या संदेश दे सकते हैं। इसलिए पहले हमें अपने विभाग की हालत को सुधारना जरूरी है।