कांगड़ा जिले में इन दिनों ऐसे ही हालात नजर आ रहे हैं। कांगड़ा के मैदानी इलाकों में भले ही काम खत्म होने को है, लेकिन ज्यादातर हिस्से में काम युद्धस्तर पर जारी है। पहले महंगे बीज-खाद, फिर बंदर-लावारिस पशु और अब खराब मौसम किसानों को बर्बाद करने पर तुला है,लेकिन अभी तक किसी भी जन प्रतिनिधि या संबंधित विभाग की ओर से सकारात्मक पहल होती नहीं दिख रही है। बारिश के दौर में थ्रेशर धारक भी मनमाने दाम वसूल रहे हैं। सूत्रों के हवाले से 15 किलो के एक टीन गेहूं के 30 रुपए वसूले जा रहे हैं। सरकार को इस ओर सकारात्मक कदम उठाने होंगे 2-3 दिनों से सूरज और बादलों में पॉवर प्ले चलता रहा। वहीं, कांगड़ा में बारिश के कारण किसानों की 40 से 50 फीसदी फसल बर्बाद हो चुकी है।
बेमौसम बारिश ने किसानों की मेहनत पर फेरा पानी
जिला कांगड़ा में पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार बारिश के कारण किसानों की गेहूं की फसल को काफी नुक़सान पहुंचा है। बारिश ने किसानों की 6 महीने की मेहनत पर पानी फेर दिया है। जिला भर में गेहूं की फसल की थ्रेशिंग का काम चरम सीमा पर था मगर खेतों में बिछी गेहूं पर गिरी बारिश ने किसानों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। वहीं थ्रेशिंग का काम भी प्रभावित हुआ है।
किसानों की साल भर की कड़ी मेहनत और खेतों में पसीना बहाने के बाद अब रोटी के लिए गेहूं के दाने बटोरने का समय आया था की आसमान से आफत बनकर बेईमान मौसम ने किसानों की मेहनत पर पानी फेर दिया है और किसानों के चेहरों में मायूसी और फसल की तबाही के कारण आंखों से आंसू छलका दिए हैं।
तूफ़ान के कारण खेतों में बिछ चुकी गेहूं की फसल
किसान विपिन का कहना है की जिस प्रकार से मौसम रोज अपनी करवट बदल रहा है और रोज बारिश हो रही है उससे किसानों की खड़ी गेहूं और काटी हुई गेहूं को नुक़सान हो रहा है उनका कहना था की रोज आए तूफ़ान के कारण गेहूं की फसल खेतों में बिछ चुकी है। अगर किसान अपनी फसल को काटता या खड़ी रहने देता है तो भी नुक़सान होता है। उन्होंने कहा की अगर मौसम एक दो दिन में साफ़ नहीं होता है तो किसानों की फसलों को बहुत भारी नुक़सान हो सकता है।
बूढ़े किसान ठाकुर दास का कहना था की अगर मौसम ऐसा ही रहता है तो किसानो की फसल बर्बाद हो जायेगी उन्होंने कहा की गेहूं से ही उनको अपने मवेशियों को चारा मिलता है उनका कहना था की पंजाब से जो चारा यहां लोग बेचने आते हैं उसका दाम बहुत ज्यादा होता है और वह उसको खरीदने में असमर्थ होते हैं।
इस बारे जब अतिरिक्त कृषि निदेशक उत्तरी क्षेत्र राकेश कुमार कौंडल से बात कि गई तो उन्होंने बताया कि हिमाचल में 3 लाख पच्चास हजार हेक्टेयर के लगभग भूमि पर गेहूं कि बिजाई होती है और तीन लाख तीस हजार मैट्रिक टन के लगभग उसका उत्पादन होता है।
उन्होंने कहा पहले जब बिजाई कि थी तो उसके बाद समय पर कभी भी बारिश नहीं हुई और जब अब हार्वेस्टिंग का समय है तो अब ओलावृष्टि के साथ साथ तेज बारिश के कारण गेहूं कि फसल को काफी नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा कि जो आंकड़े अभी उनके पास हैं उसके मुताबिक अभी तक तीस से पैंतीस प्रतिशत गेहूं के उत्पादन में फर्क पड़ा है