मोदी सरकार ने अमेरिका से आयात होने वाले सेब ,नाशपाती ,अखरोट समेत कुल 29 उत्पादों पर आयत शुल्क बढ़ाने का फैसला लिया है। अमेरिकी सेब पर आयात शुल्क 50 फीसदी से बढाकर 75 फीसदी कर दिया है। केंद्र सरकार के इस फैसले से बागवान कुछ खुश तो जरुर है लेकिन बागवान इसे और अधिक बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। बागवान इस फैसले को चुनावी फैसला मानकर भी देख रहे हैं। विदेशी सेब भारत के सेब के मुकाबले सस्ता मिलता है। परिणामस्वरूप हिमाचल का सेब कीमत में मार खा रहा है और बागवानों को घाटा उठाना पड़ रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदेश के बागवानों से साल 2014 के संसदीय चुनावों से पहले पालमपुर, मंडी और सोलन में रैलियां कर विदेशी सेब पर अंकुश लगाने का वादा किया था। जिसके चलते चार साल बाद मोदी सरकार ने फिर से चुनाव नजदीक आने पर ये फैसला लिया है। सेब पर आयात शुल्क बढ़ने से प्रदेश के बागवानों को इसका सीधा लाभ होगा। आयात शुल्क बढ़ने से सेब सीजन में इस बार फसल कम होने के बावजूद बागवानों को उनकी फसल के अच्छे दाम मिल सकते हैं। सेब किसान ने सरकार से अन्य देशों के साथ भी आयत शुल्क बढ़ाने की मांग की है।
केंद्र सरकार ने ये फैसला अमेरिका की ओर से भारत से निर्यातित एल्यूमिनियम और स्टील पर अतिरिक्त कर लगाने के बाद अपनाया है। इस बारे में केंद्र सरकार ने अमेरिका को मई महीने में भी चेता दिया था कि अगर अमेरिका ने पुनर्विचार नहीं किया तो भारत सेब सहित कई उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ा देगा। अब 30 अमेरिकी उत्पादों पर बढ़ाने का फैसला हुआ है। इनमें अमेरिकी सेब प्रमुख है।बागवानी मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर ने कहा कि अमेरिका के सेब पर आयात बढ़ाया जाना ये प्रदेश के सेब बागवानों के लिए ये राहत होगी। भाजपा सरकार किसानों-बागवानों की हमेशा हितैषी रही है। सरकार इसके लिए भरकस प्रयास कर रही है।
आपको बता दें कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा सेब उत्पादक देश है। देश में सेब का उत्पादन जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी राज्यों तक ही सीमित है। भारत अमेरिका, चीन, चिली, न्यूजीलैंड, इटली, ईरान और अफगानिस्तान से सेबों का आयात करता है। अगर पिछली बार की बात करें तो अप्रैल-जनवरी 2018 के दौरान, भारत का सेब आयात 29.8 करोड़ डॉलर का रहा है।