भीड़ की हिंसा पर लगाम के लिए आज सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि भीड़तंत्र की इजाजत नहीं दी जा सकती है। शांति और बहुलतावादी समाज की रक्षा राज्य का दायित्व है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि संसद भीड़ की हिंसा के लिए अलग से कानून बनाने पर विचार करे। साथ ही उन्होंने राज्य की सरकारों से कहा कि भीड़ की हिंसा को रोकना उसकी जिम्मेदारी है। शीर्ष अदालत ने कहा कि 20 अगस्त को कोर्ट हालात की समीक्षा करेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ''किसी भी शख्स को कानून हाथ में लेने का अधिकार नहीं है। भय और अराजकता का माहौल पैदा करने वालों के खिलाफ राज्य कार्रवाई करे। हिंसा की इजाजत नहीं दी जा सकती है.''
आपको बता दें कि केवल गोरक्षा के नाम पर 2012 से लेकर अब तक 85 घटना हुई है। इंडिया स्पैंड के मुताबिक, इन वारदातों में भीड़ अब तक 33 लोगों की जान ले चुकी है। गोरक्षा के नाम पर हुई हिंसा संबंधित याचिका पर चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन एस पूनावाला और महात्मा गांधी के पौत्र तुषार गांधी समेत कई अन्य ने याचिका दाखिल की थी।
तुषार गांधी ने शीर्ष अदालत के इस मामले के पहले के आदेशों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए कुछ राज्यों के खिलाफ मानहानि याचिका भी दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन तीन राज्यों ने शीर्ष अदालत के छह सितंबर , 2017 के आदेशों का पालन नहीं किया है। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 6 सितंबर को सभी राज्यों से कहा था कि गौ-रक्षा के नाम पर हिंसा की रोकथाम के लिये कठोर कदम उठाये जायें.