गौ वंश को बचाने के बड़े-बड़े दावे करने वाली बीजेपी सरकार के दावों की पोल खुली है। कांगड़ा के नूरपुर गौ सदन में रखी गायों की बुरी हालत है। कुछ गाय तो सदन में ही मर गई है जिन्हें चील कौए खा रहे है जो जिंदा है वह भी मरने की स्थिति में है। 10 जुलाई को ही मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने राजगढ़ में गौ सदन बनाने की नींव रखी थी।
गायों की मौत का मामला सामने आया है। सूत्रों की माने तो गोसदन पर कुप्रबंधन इस तरह हावी है कि डॉक्टर से लेकर प्रबंधक तक कई कई दिनों तक गौशाला में नहीं आते। कुछ मजदूरों के भरोसे ही पूरा गोसदन चल रहा है। नतीजतन गायें बीमार पड़कर मर रहीं हैं। हालात इतने बदतर हैं कि गायों के शव तक रोज नहीं हटाए जाते।
यहां सवाल उठता है गोकशी और गौरक्षा के मुद्दे को उठाने वाली ऐसी संस्थाओं पर जो गायों के नाम पर हो हंगामा तो जमकर काटतीं हैं, लेकिन बाद में सरकारी मदद मिलने के बाद गायों को राम भरोसे ही छोड़ देतीं हैं।
इस गोसदन को देखकर यह कहा जा सकता है, कि कुछ लोगों ने गौरक्षा और गौसेवा को अपना कारोबार बना रखा है। गायों के लिए आने वाली सरकारी मदद का बंदर बांट होता है और गायें बेमौत मर रहीं हैं। गाय केवल सियासी महात्वाकांक्षा पूरा करने का जरिया भर बन कर रह गई है। अगर गायों को भूख प्यास से मरना ही था तो उन्हें इसके लिए गोसदन जैसी जगहों पर ले जाने की क्या आवश्यकता थी।