12 और 13 अगस्त, 2017 की रात को कोटरोपी में जो त्रासदी आई उसमें 48 लोगों की जानें गईं लेकिन किसी भी स्थानीय व्यक्ति का जानी नुक्सान नहीं हुआ। लोगों को समय रहते खतरे का अंदेशा हो गया और वे घरों से बाहर निकल आए लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम था कि जो कदम घर से बाहर निकले हैं वो फिर उस घर में लौटकर नहीं आएंगे। भीषण भू-स्खलन में खुद तो बच गए लेकिन पाई-पाई जोड़कर बनाए आशियाने और गुजारा करने के लिए मिली पुश्तैनी जमीन को नहीं बचा सके। इस भू-स्खलन में कोटरोपी गांव के 8 परिवार घर से बेघर हुए। हादसे में इनके आशियाने मलबे में दब गए और इन्हें खुले आसमान के नीचे लाकर खड़ा कर दिया। इसके अलावा 5 ऐसे परिवार भी थे जिनकी सिर्फ जमीनें इस मलबे की भेंट चढ़ीं। उस वक्त सरकार ने फौरी राहत के तौर पर आर्थिक सहायता, कुछ जरूरी सामान और रहने के लिए कुछ अस्थायी स्थान इन्हें दे दिए।
सरकार आज तक नहीं उठा पाई ठोस कदम
आपको जानकर हैरानी होगी कि बीते एक वर्ष ये 8 परिवार उन्हीं अस्थायी ठीकानों पर अपना जीवन बसर कर रहे हैं। कोई पटरवारघर में तो कोई रैस्ट हाऊस में शरण लिए हुए हैं। कुछ ने तो मजबूरी में क्वार्टर तक ले लिए हैं लेकिन सरकार ने आज दिन तक इनकी इस समस्या की तरफ ध्यान नहीं दिया और इन्हें जमीनें दिलाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। प्रभावित रामकली, सोमा देवी, मान चंद, चोबे राम और नारायण दास ने बताया कि उन्होंने जमीनों और आशियानों के लिए एस.डी.एम. से लेकर सी.एम. तक गुहार लगाई लेकिन किसी ने इनकी फरियाद नहीं सुनी। हर जगह से एक ही जबाव आया कि काम जल्दी ही हो जाएगा और ऐसा बोलते-बोलते एक वर्ष बीत गया। प्रभावितों का कहना है कि सरकार ने कोटरोपी में मिट्टी को पलटने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए लेकिन प्रभावितों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
वन विभाग की जमीन के साथ होनी है अदला-बदली
बता दें कि यहां पर वन विभाग के सिवाय और किसी भी विभाग की जमीन मौजूद नहीं है, ऐसे में जो जमीन मलबे में बही है उसकी अदला-बदली वन विभाग की जमीन के साथ होनी है। इसके लिए सरकार के स्तर पर निर्णय लिया जाना है और एक वर्ष बीत जाने के बाद भी यह निर्णय नहीं लिया जा सका है। वहीं जब इस बारे में एस.डी.एम. पधर आशीष शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यह मामला सरकार को भेजा गया है और अभी तक उन्हें सरकार की तरफ से कोई जबाव नहीं आया है।
सरकार को ही लेना है निर्णय
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रदेश के इतिहास में जो सबसे बड़ा भू-स्खलन हुआ और इसके कारण जो प्रभावित हुए उनके प्रति सरकार की संजीदगी कितनी है। मौजूदा सरकार को भी बने हुए 8 महीने हो गए हैं लेकिन सरकार भी इन प्रभावितों की तरफ कोई खास ध्यान नहीं दे पाई है। अंतत: यह कार्य सरकार के स्तर का ही है और सरकार को ही इस पर जल्द निर्णय लेना होगा ताकि प्रभावितों को समय रहते जमीनें भी मिलें और उनके आशियाने भी बनें।
ये हैं कोटरोपी के मौजूदा हालात
अगर कोटरोपी के मौजूदा हालातों की बात करें तो यहां पर इस वर्ष भी भू-स्खलन के कारण नैशनल हाईवे-20 को सुचारू रखने के लिए अस्थायी तौर पर बनाया गया मार्ग बह गया है। एन.एच. का ट्रैफिक पधर से नौहली होते हुए जोगिंद्रनगर और घटासनी से डायना पार्क होते हुए पधर के लिए डायवर्ट किया गया है। प्रशासन यहां रोड बहाली के प्रयास तो कर रहा है लेकिन इसकी संभावना कम ही नजर आ रही है। वहीं सी.एम. जयराम ठाकुर ने भी कह दिया है कि कोटरोपी का स्थायी समाधान बरसात के मौसम के बाद ही हो पाएगा। अभी लोग पैदल ही इस मलबे की पहाड़ी को पार कर रहे हैं।