शिमला और सोलन जिला के आसपास के क्षेत्रो में दो दिन तक डगैली या चुड़ैल की रात में यहां के लोग दहशत के साये में जीते हैं। ये रात दो दिन तक रहती है जिसे छोटी और बड़ी डगैली की रात के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इन दो रातों में काली नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव अधिक रहता है। ऐसा भी माना जाता है कि इन्ही दो रातों में तांत्रिक वर्ष में एक बार काली शक्तियों को जागृत करने के लिए साधना करते है। जिनसे बचने के लिए यहां के लोग अपने घरों के बाहर टिम्बर के पत्ते लटकाते हैं और अपने देवी देवताओं की पूजा अर्चना भी करते है।
भाद्रपद मास सको काला महीना भी माना जाता है। इस माह की अमावस्या की रात को ही डगैली या चुड़ैल की रात कहा जाता है। इस बार 20 और 21 अगस्त को डगयाली आ रही है। इस अमावस्या की रात को माना जाता है कि जितने भी काली विद्या वाले तांत्रिक होते है वह काली शक्तियों को जागृत कर किसी का अहित करने के लिए तंत्र का सहारा लेते है। शमशान से लेकर घरों तक काली शक्तियों का राज होता है। जिनसे बचने के लिए ऊपरी शिमला में तो देवता रात भर खेलते हैं और अपने भक्तों की रक्षा करते है।
निचले हिमाचल में भी इस माह को लेकर कुछ इसी तरह की धारणा है। ऐसा माना जाता है कि इस दौरान देवता बुरी शक्तियों से लड़ाई करने चले जाते है जिस डर के कारण लोग अपने घरों के बाहर दीये जलाकर बुरी शक्तियों को भगाने का आह्वान करते है। ऐसा भी कहा जाता है इस देवताओं एवम बुरी शक्तियों के बीच की लड़ाई में यदि देवता जीत जाते है तो साल सुख शांति से गुजरता है और यदि देव दानव के इस युद्ध में देवता हार जाते है तो प्राकृतिक आपदाओं के बोलवाला रहता है।
ऐसा कहा जाता है कि जिस तरह हमारे जीवन में दीपावली के पर्व का महत्व है उसी तरह काली शक्तियों के उपासकों के लिए डगैली की रात का महत्व है। इस रात काली शक्तियां अपने चरम पर होती है और काली शक्तियों के उपासक अपनी ताकत को कई गुना बढ़ा लेते है।