सतीश धर।। कांगड़ा चाय की बात आते ही मन-मस्तिष्क में एक विशेष महक कौंध जाती है।धर्मशाला और पालमपुर के बागानों में पैदा की जाने वाली यह चाय हर हिमाचली ही नहीं बल्कि समस्त देशवासियों के लिए भी गर्व का विषय है। कुछ तो अलग स्वाद है कांगड़ा-टी का जिसकी ख्याती अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी है।
कांगड़ा चाय के नाम से विख्यात इस चाय के ज़ायके से जो लोग वाकिफ हैं वे आज भी कांगड़ा चाय का ही सेवन करते हैं। कांगड़ा जिला में चाय का उत्पादन 19वीं शताब्दी के शुरुआत में प्रारम्भ हुआ था l यहां ग्रीन-टी और ब्लैक-टी दोनों का उत्पादन किया जाता था।
1882 के कांगड़ा डिस्ट्रिक्ट गज़ेटियर के अनुसार कांगड़ा की चाय भारत के अन्य भागों में पैदा होने वाली चाय के मुकाबले में ‘सर्वश्रेष्ठ’ थी और काबुल व मध्य एशिया काँगड़ा की चाय का सबसे बड़ा बाज़ार था। 1886 तथा 1895 में लन्दन तथा एम्सटर्डम में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन में स्वर्ण और रजत पदक जीता था।
1905 के भूकंम्प ने कांगड़ा जिला में चाय बागान्न को सबसे ज्यादा नुक्सान पहुंचाया और चाय बागानों के अंग्रेज़ मालिकों ने स्थानीय लोगों को बागान बेच दिए और काँगड़ा से चले गए। तब से नये मालिक काँगड़ा चाय की अधिक पैदावार नही कर सके। कांगड़ा, धर्मशाला, पालमपुर और जोगिंद्ननगर में उगाई जाने वाली चाय चीन की एक विशेष किस्म की चाय है जिसे कैमेल्लिया सिनेसिस(camellia sinensis) कहते हैं ।
इस का उत्पादन इन क्षेत्र में 3212 हेक्टेयर क्षेत्र में होता है और लगभग 9 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन यहां किया जाता है । कांगड़ा चाय की पत्तियां 4-15 सेंटीमीटर लंबी और 2-5 सेंटीमीटर चौड़ी होती हैं । इन चाय की पत्तियों में 4 प्रतिशत कैफीन होती है। इस क्षेत्र में केवल 5870 चाय उत्पादक हैं जिनमे से केवल 20 चाय उत्पादक 10 हेक्टर से अधिक की जोत वाले हैं। शेष सभी चाय उत्पादक छोटी- छोटी जोत वाले हैं। चाय की इस किस्म में कई औषधिय गुण हैं । यह चाय डायबीटीज और रक्त चाप जैसी बीमारियों के लिए भी गुणकारी है।
कांगड़ा चाय को राष्ट्रीय पहचान देने के लिए भारत सरकार ने इसे वर्ष 2005 में जोग्रोफिकल इंडिकेशन का दर्जा दिया। जिस का अर्थ है कांगड़ा चाय के नाम से ब्रांड का पंजीकरण। वैसे भारत में उतरी-पूर्वी क्षेत्र चाय के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। असम, दार्जलिंग और निलगिरी की चाय के बाज़ार के साथ प्रतिस्पर्धा न कर पाने की वजह से भी चाय उत्पादक चाय के बागानों से मुहं मोड़ रहे हैं। यदि भारत सरकार कांगड़ा चाय को राष्ट्रीय पेय का दर्जा दे दे तो चाय के शौक़ीन लोगों का कांगड़ा की चाय के प्रति भी आकर्षण बढ़ जाएगा। वहीं, कांगड़ा चाय के उत्पादन को बढ़ाने के लिए पालमपुर का कृषि विद्यालय भी निरंतर प्रयासरत है।
भारत सरकार के टीबोर्ड ने पालमपुर में अपना क्षेत्रीय कार्यालय खोला है जो चाय बगान मालिकों की समस्याओं के समाधान हेतु कार्य कर रहा है। इस क्षेत्र में चाय बागान के मालिकों की समस्या श्रमिकों और अद्यतन विज्ञानी जानकारी प्राप्त न होना है। पुराने बागीचों के कारण चाय का उत्पादन भी कम होता है। हिमाचल प्रदेश सरकार गाहे-बगाहे हिमाचल के चाय बागानों के मालिकों की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासरत रहती है। यदि चाय के बागानों को हिमाचल के पर्यटन से जोड़ दिया जाए तो इन क्षेत्रों के चाय बागानों के रख-रखाव में तो सुधार होगा ही प्रदेश की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।
( हिमाचल से ताल्लुक रखने वाले सतीश धर जाने-माने हिंदी साहित्यकार हैं। हिमाचल की कला एवं संस्कृति पर उनके लेख पत्र-पत्रिकाओं में अक्सर छपते रहते हैं। फिलहाल, सतीश धर समाचार फर्स्ट के लिए अपनी अमूल्य सेवा दे रहे हैं।)