Follow Us:

शिमला को अब मिलेगा बंदरों के आतंक से छुटकारा, वन विभाग ने तैनात की एक्सपर्ट टीम

पी. चंद, शिमला |

हिमाचल प्रदेश में बंदरों की समस्या से निजात पाने के लिए राज्य वन विभाग के वन्य प्राणी प्रभाग द्वारा शिमला शहर में एक अध्ययन किया गया है। जिसमें वानरों के वासस्थलों, खाद्य-स्थलों और वानरों की दिनचर्या को जीपीएस और फोटो से वानरों के मूलधार आंकड़ों का संकलन किया गया। यह प्रदेश का इस प्रकार का पहला वैज्ञानिक पद्धति द्वारा किया गया प्रयास है।
 
राज्य वन विभाग के एक प्रवक्ता ने संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि इस कार्य के लिए विभाग की चार टीमों का गठन किया गया जिसमें वन रक्षक तथा ईको-टास्क फोर्स के कर्मचारी सम्मिलित थे। शिमला शहर के 31 वार्डों मं आंकलन करने में ढाई माह का समय लगा। अध्ययन में पाया गया कि शिमला में 1700 से अधिक संख्या में लगभग 49 वानरों के समूह वास करते हैं।

क्षेत्रफल के आधार पर सबसे बड़ा समूह खलीनी से कन्या नेहरु हस्पताल तक विचरण करता है। क्षेत्रफल के आधार पर सबसे छोटा क्षेत्र ढांडा के वानर समूह का पाया गया जो कि वहीं पर स्थित कूड़े के स्थान पर वास करता है। यह भी पाया गया कि वानरों के समूह अपने निर्धारित राह पर ही दिनभर विचरण करके रात को अपने वासस्थल पर विश्राम करते हैं।

शहर में लगभग 83 कूड़ादान मौजूद हैं जिनमें से लगभग 45 कूड़ादानों पर वानर हर समय मौजूद रहते हैं। इसके अलावा शहर में लगभग 30 खूले स्थानों पर कूड़ा फैंका जाता है। इन सभी कूड़ा फैंकने के स्थानों पर न केवल बंदर बल्कि लंगूर, कुत्ते और अन्य आवारा जानवर भी मौजूद रहते हैं।

राज्य सरकार के निर्देशानुसार वानरों को उनके समूह के आधार पर उनके वासस्थल और खाद्य स्थलों पर ही नसबन्दी हेतु पकड़ने के लिए पेशेवर टीमों को कार्य पर लगाया गया है। यह पहली बार है कि वानरों को पकड़ने के लिए जहां-जहां संम्भव है, जाल उपयोग में लाया जा रहा है क्योंकि यह पिंजरे से बंदरों को पकड़ना मुश्किल  है। वन रक्षकों की देख-रेख में बंदर पकड़ने की टीमें कार्य कर रही हैं ताकि पहले से संयोजित डेटा के आधार पर ही बंदरों को पकड़ा जाए। बंदरों को पकड़ने का काम सुबह 5-6 बजे से शुरु कर दिया जाता है।