मुश्किलों से घबरा कर उसके सामने घुटने टेक देना कोई अकलमंदी नहीं होती। परिस्थितियां चाहे जितनी भी खराब और आपके प्रतिकूल क्यों न हों, इंसान को अपना संघर्ष हमेशा जारी रखना चाहिए, क्योंकि हालात से लड़ना, लड़कर गिरना और फिर उठकर संभलना ही जिंदगी है। नसीब के भरोसे बैठने वालों को सिर्फ वहीं मिलता है, जो कोशिश करने वाले अकसर छोड़ देते हैं। यानी तदबीर से ही तक़दीर बनाई जाती है। अगर आपको इन कही बातों पर एतबार न हो, तो आप जिला के मदनपुर के किसान राकेश कालिया से मिलिए पेशे से तो स्कूल में बच्चों को शिक्षा का पाठ पढ़ाते हैं ।
किसानी परिवेश में पले बड़े राकेश भले ही शिक्षक के रूप में अपने व परिवार की जीविका भली भांति चला रहे थे। परंतु किसानों की खेती पर नासूर बने जंगली जानवरों के आतंक से वह कभी अछूते नहीं रहे। जंगली जानवरों द्वारा हरीभरी फसल की तबाई का मंजर ना जाने।कितनी बार उनकी आंखों के सामने से गुजरा जिसका मर्म हमेशा उनके जहन में रहा। लगातार सोच विचार करते रहने वाले इस शिक्षक ने तरह तरह के जुगाड़ जंगली जानवरों से अपनी फसल को बचाने के लिए किए।
इस जुगाड़ से जानवरों से फसलों के बचाव में मिली सफलता
परन्तु हाल ही में एक अनोखे जुगाड़ से जंगली जानवरों से फसलों के बचाव पर उन्हें सफलता मिली है। खासकर जंगली सुअर अब इस जुगाड़ के चलते उनकी फसल के आस पास भी नहीं फटकते। यह सफल प्रयोग न केवल गांव में चर्चा का विषय है बल्कि सम्बन्धित महकमें सहित वन विभाग का भी ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहा है। तकनीकी और अपने ज्ञान का ऐसा तालमेल भिड़ाया कि अब राकेश अन्य किसानों के लिए उदाहरण बन गए हैं।
राकेश कहते हैं कि किसान नहीं तो अन्न नहीं, अन्न नहीं तो हम नहीं। उन्होंने बताया कि आम बाजार में मिलने वाली चमकीली रस्सी जो आसानी से उपलब्ध हो जाती है उससे किसान अपनी फसल को काफी हद तक जंगली जानवरों से सुरक्षित कर सकता है।
ऊना ही नहीं हर जिले के किसान की है ये पीड़ा:-
प्रदेश के लगभग हर जिले के किसान जंगली जानवरों के आतंक से परेशान हैं। हजारों रुपए की लागत और हड्डी तोड़ मेहनत से तैयार होती फसल को जानवर बेरहमी से बर्बाद कर देते हैं, किसानों को सबसे अधिक नुकसान जंगली सुअर करते हैं।कई किसान रात-रात भर जागकर खेतों की रखवाली कर रहे हैं। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में तो जंगली सुअरों का जोरदार आतंक है। जिला से सटे गांवों से लेकर दूरस्थ ग्रामीण अंचलों तक सुअर फसल और सब्जियों को बर्बाद कर किसानों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। जिससे किसानों का खेती से मोह भंग हो रहा है। गांवों में आजीविका के सीमित साधनों के चलते रोजी रोटी के लिए युवाओं का गांव से शहरों की की ओर पलायन में भी तेजी आ रही है।
हालांकि कृषि के साथ साथ वनविभाग भी लोगों को समय-समय पर सुअरों से फसलों की सुरक्षा के लिए किए जाने वाले उपायों को लेकर कई जागरूकता कार्यक्रम चलाता रहता है। पर जंगली जानवरों से निजात का की स्थायी हल अब तक नही निकल पाया है।
जिले में विभिन्न प्रकार की फसल गेहूं, चना सहित सब्जियां पालक, आलू, मटर, गोभी, मूली, धनिया, भिंडी, मिर्च आदि का उत्पादन होता है। जिससे किसानों की रोजी-रोटी भी चलती है। पिछले दस सालों में किसानों को जंगली सुअरों के आतंक से दो चार होना पड़ रहा है। रात के समय सुअरों का झुंड खेतों में घुसकर फसल और सब्जियों को चैपट कर देता है। खेतों को भी खोदकर सुअर नष्ट कर रहे हैं। सुरक्षा को देखते हुए किसान सुअरों का मुकाबला भी नहीं कर सकते। उनके पास बेबस होकर अपनी खेती को बर्बाद होने से देखने के सिवाय कोई अन्य चारा नहीं था।
क्या है वैज्ञानिक कारण जिससे चमकीली रस्सी से बनी फेंसिंग की पास नहीं फटकते जानवर:-
जंगली जानवरों पर शोधकर्ताओं का मानना है कि रस्सी का चमकीला प्रभाव जानवरों के प्राकृतिक स्वभाव से विपरीत है। ऐसे में जानवर रस्सी के पास तक तो पहुंच जाता है पर उसे पार करने का प्रयास किए बिना रास्ता बदल लेता है।यहां यह भी बताना जरूरी की प्रयोग के रूप जब यह विधि अपनाई गई तो जो खेत इस फेंसिंग से कवर किए हुए था। उसपर तो जनवरों द्वारा कोई नुकसान नहीं पहुंचाया गया परन्तु समीप ही फेंसिंग रहित अन्य खेतों पर जंगली जानवरों द्वारा बुरी तरह तबाही मचाई । इस से प्रभावित होकर अन्य खेतों पर भी ऐसी फेंसिंग कर फसल को जानवरों की मार से सुरक्षित कर लिया गया है।
आसानी से बाजार में उपलब्ध है रस्सी:-
एक कनाल में 4 से 5 फुट ऊंचाई की फेंसिंग(रस्सी) पर चारों और कवर करने पर महज 5 से 6 किलो रस्सी की खपत होती है। जो कि बाजार में 50 से 60 रुपए किलो की मामूली कीमत पर उपलब्ध है। रस्सी का रंग चमकीला होता है जो कि वेस्ट मैटिरयल को रि-साइकिल कर तैयार की जाती है। घरों में इसे कपड़े सुखाने और पशुओं के बांधने सहित अन्य घरेलू कामों में भी लाया जाता रहा है।