सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दागी नेताओं के चुनावी भविष्य पर बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि चार्जशीट के आधार पर जनप्रतिनिधियों पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है। चुनाव लड़ने से रोकने के लिए सिर्फ चार्जशीट ही काफी नहीं है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि आम जनता को अपने नेताओं के बारे में पूरी जानकारी होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा है कि हर नेता को अपने आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी चुनाव लड़ने से पहले चुनाव आयोग को देनी चाहिए। कोर्ट ने कहा है कि इस मसले संसद को कानून बनाना चाहिए।
चीफ जस्टिस ने कहा कि करप्शन राष्ट्रीय आर्थिक आतंक बन गया है। भारतीय लोकतंत्र में संविधान के भारी मेंडेट के बावजूद राजनीति में अपराधीकरण का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि कानून का पालन करना सबकी जवाबदेही है। कोर्ट ने कहा कि वक्त आ गया है कि संसद ये कानून लाए ताकि अपराधी राजनीति से दूर रहें। राष्ट्र तत्परता से संसद द्वारा कानून का इंतजार कर रहा है। कोर्ट ने कहा कि दूषित राजनीति को साफ करने के लिए बड़ा प्रयास करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने संसद को एक कानून लाना चाहिए ताकि जिन लोगों पर गंभीर आपराधिक मामले हैं वो पब्लिक लाइफ में ना आ सकें। कोर्ट ने कोई भी आदेश देने की बजाए संसद पर छोड़ दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा
1. हर प्रत्याशी चुनाव आयोग को एक फार्म भरकर देगा जिसमें लंबित आपराधिक मामले बताएगा।
2. प्रत्याशी केसों की जानकारी अपनी पार्टी को देगा।
3. पार्टियां अपने प्रत्याशियों के आपराधिक केसों की जानकारी वेबसाइट पर जारी करेगी और इसकी वाइट पब्लिसिटी करेगी
काफी पुराना है मामला?
इस मामले की सुनवाई के दौरान मार्च 2016 में सुप्रीम कोर्ट ने यह मामला पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को विचार के लिए भेजा था। इस मामले में बीजेपी नेता और वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय के अलावा पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और एक अन्य एनजीओ की याचिकाएं भी लंबित हैं। याचिका में कहा गया है कि इस समय देश में 33 फीसदी नेता ऐसे हैं जिन पर गंभीर अपराध के मामले में कोर्ट आरोप तय कर चुका है।