ऊना में केंद्र सरकार के खिलाफ विरोध करने का आनोखा तरीका अपनाया। यहां एससी/एसटी कानून में केंद्र द्वारा किए गए बदलाव पर ब्राह्मण कल्याण सभा ने रोष जाहिर किया और हिमाचल के 6 सांसदों का धर्मशांति(श्राद्ध) कार्यक्रम किया। धर्मशांति कार्यक्रम में सांसदों के फोटो पर हार चढ़ाए गए और दान दक्षिणा के लिए चारपाई समेत तमाम चीजें रखी गई। लोगों ने बकायदा उसकी परिक्रमा की और पंडित को झुलाने के बाद भंडारा भी लगाया गया।
ब्राह्मण सभा ने कहा कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले से छेड़छाड़ की है। ऐसा लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला केंद्र सरकार की गले का फांस बन रहा है। केंद्र की इस फैसले से स्वर्ण समाज की राजनीतिक पार्टियों में केंद्र सरकार के खिलाफ रोष बढ़ा रहा है और इसे के चलते विरोध के नए तरीके अपनाए जा रहे हैं। सभा ने कहा कि आगामी लोकसभा चुनावों में चुनावों का भहिष्कार किया जाएगा और नोटा दबाया जाएगा।
इन सांसदों में जेपी नड्डा, आनंद शर्मा, विपल्व ठाकुर, शांता कुमार, अनुराग ठाकुर और वीरेंद्र कश्यप का नाम शामिल है, जिनके लिए धर्मशांति का कार्यक्रम किया गया। ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट में बदलाव किया था, जिसपर केंद्र सरकार ने इनके पक्ष में याचिका दायर की थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने कानून में संशोधन वाला विधेयक पारित किया, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार को नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा था।
ये है संशोधित कानून…
एससी/एसटी संशोधन में नए प्रावधान 18ए के लागू होने से दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी। याचिका में इसी प्रावधान पर एतराज जताया गया था। साथ ही, संशोधित कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी। एससी/एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा ने पास कर दिया था और इसे अधिसूचित भी कर दिया गया था।
रोपी अगर हाईकोर्ट में गुहार लगाए तभी उसे नियमित जमानत मिलने का प्रावधान है। मामले की छानबीन इंस्पेक्टर रैंक के पुलिस अधिकारी ही कर सकेंगे।अगर किसी ने दलितों के खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया, तो फौरन मामला दर्ज होगा। ऐसे मामले की सुनवाई सिर्फ विशेष अदालत में होगी।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का फैसला..??
सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा दलित कानून में बदलाव करते हुए कहा था कि किसी की फौरन गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। शिकायत मिलने पर तुरंत केस भी दर्ज नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर के पुलिस अधिकारी ही शुरुआती जांच करेंगे और यह जांच सात दिन से ज्यादा समय तक नहीं चलनी चाहिए। डीएसपी स्तर के अधिकारी तय करेंगे कि मामला आगे चलाने लायक है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने गलत और फर्जी मुकदमों की ओर सरकार का ध्यान खींचा था।