हिमाचल प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर सवाल उठे हैं, लेकिन इस बार यह सवाल किसी शिक्षक नहीं, बल्कि ऑफिस में बैठने वाले बाबुओं पर उठे हैं। हैरानी की बात है कि वर्ष 2004 के बाद स्कूलों के नए भवन के लिए बजट मिलने के बावजूद एक ईंट भी भवन निर्माण के लिए नहीं लग पाई है।
हैरानी की बात है कि करोड़ों रुपए का बजट राज्य सरकार 15 सालों में जिलों और हर ब्लॉक को दे चुकी है। राज्य सरकार को जानकारी मिली है कि इतने सालों से जो बजट राज्य सरकार की ओर से स्वीकृत किया गया, वह स्कूल निर्माण पर खर्च ही नहीं हो पाया। राज्य सरकार ने स्कूल निर्माण के नाम पर 15 सालों से अभी तक चार करोड़ के घोटाले की आशंका जताई है।
इतने बड़े घोटाले के बाद सरकार भी हैरान है कि आखिर इतना सारा बजट कैसे खर्च नहीं किया गया और इसकी जानकारी अभी तक विभाग में भी क्यों उपलब्ध नहीं है। सरकारी स्कूलों के भवनों के निर्माण के लिए अभी तक कितना बजट जिला और ब्लॉक अफसरों को दिया गया, इसकी रिपोर्ट मंगवा ली गई है। शिक्षा विभाग को 15 सालों की रिपोर्ट सरकार को भेजनी होगी। इस रिपोर्ट में विभाग को बताना होगा कि स्कूल निर्माण का पैसा किस ऑफिस व किस अफसर के पास जाकर आगे नहीं मिला। यानी जिला उपनिदेशक , ब्लॉक आफिसर्ज तक की रिपोर्ट इस दौरान तैयार करवाई जाएगी। इस दौरान शिक्षा विभाग के कई अधिकारी जांच के घेरे में आ सकते है।
ऐसे हुआ खुलासा
चौपाल क्षेत्र से स्कूल भवन को लेकर शिकायत आई। सरकार के पास जब मामला पहुंचा तो सामने आया कि स्कूल के लिए तो वर्ष 2004 में ही बजट दे दिया गया था, लेकिन इसके बाद काम शुरू नहीं हो पाया। इसी के बाद सरकार हरकत में आई।
शिक्षा सचिव अरुण शर्मा के आदेश
शिक्षा सचिव अरुण शर्मा ने सालों पूराने रिकार्ड खंगाले तो पाया कि 2004 के बाद प्रदेश के अधिकतर स्थानों में बजट के बाद भी स्कूल भवन नहीं बन पाए। शिक्षा सचिव ने अब गंभीरता से इस मामले की जांच के बारे में कहा है। अभी तो चार करोड़ का ही घोटाला सामने आया है। कहा जा रहा है कि यह ज्यादा हो सकता है।