देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए रिजर्व बैंक को अधिक स्वायत्ता देने की जरूरत है। आरबीआई के डेप्युटी गवर्नर विरल आचार्य ने शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है।
एडी श्रॉफ मेमोरियल लेक्चर में आचार्य ने कहा, 'जो केंद्र सरकार सेंट्रल बैंकों की आजादी की कद्र नहीं करती, उसे देर सबेर वित्तीय बाजारों की नाराजगी का शिकार होना पड़ता है। महत्वपूर्ण रेगुलेटरी संस्थानों को नजरअंदाज करने का नतीजा विनाशकारी होता है' आचार्य ने आगे कहा, सेंट्रल बैंकों को आजादी दी जाए तो इससे कई फायदे हैं, जैसे कि इससे कर्ज की लागत घटती है, अंतरराष्ट्रीय निवेश बढ़ता है और बैंक लंबे वक्त तक जिंदा रहते हैं।
आचार्य ने कहा, 'देश में हमेशा चुनाव होते रहते हैं, कभी राष्ट्रीय, कभी प्रादेशिक, तो कभी मध्यावधि। चुनाव नजदीक आते ही पहले किए वादे पूरे करने की जल्दी बढ़ जाती है। चुनावी घोषणा पत्र खुद डिलीवर नहीं कर सकते, इसलिए लोकलुभावन विकल्प लागू करने में तेजी आ जाती है, जबकि केंद्रीय बैंक इससे उलट टेस्ट मैच खेलते हैं.'
कर्ज सस्ता करने के बुरे नतीजे
ब्याज दर घटाए जाने के सवाल पर आचार्य ने कहा कि इसे ज्यादा घटाने पर कर्ज बढ़ता है जो आगे चलकर महंगाई का कारण बनता है। यह छोटी अवधि के लिए मजबूत आर्थिक वृद्धि का भले संकेत दे लेकिन आगे इसके नतीजे बुरे हो सकते हैं। इसके चलते दीर्घ अवधि में संदिग्ध निवेश, प्रॉपर्टी की कीमतों में गिरावट और वित्तीय संकट के खतरे झेलने पड़ सकते हैं।
गौरतलब है कि आरबीआई से अधिकारियों ने अभी हाल में कहा है कि कुछ बैंकों के कर्ज ब्याज में छूट दी जाए। इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशल सर्विसेज के हालिया कर्ज संकट के चलते सितंबर के बाद से ही फाइनैंशल मार्केट में अस्थिरता के हालात हैं। देश की सबसे बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनियों में से एक के कर्ज संकट में फंसने के बाद से देश की पूरी बैंकिंग व्यवस्था की स्थिति को लेकर ही चिंता जताई जा रही है।