पूर्व मुख्य साइंटिस्ट फॉरेंसिक विज्ञान भारत सरकार, वी. के कश्यप ने शिमला में डीएनए से जुड़ी कुछ बातें बताईं। उनका कहना था कि अपराधी तक पहुँचने के लिए डीएनए तकनीक आज के समय में एक बेहतर हथियार साबित हो सकता है। हिमाचल प्रदेश में 2008 में डीएनए टेस्ट शुरू हो गए थे। आज से 5 साल पहले तक डीएनए में पैटरनिटी से जुड़े मामले आ रहे थे।
लेकिन अब सेक्सुअल अस्लट के ज्यादा मामले आ रहे हैं। सैंपल सही ढंग से नहीं आ रहे हैं। इसी वजह से रिपोर्ट सही नहीं आ पाती है इसलिए सैंपल सही ढंग से कलेक्ट करना जरूरी है। वारदात की जगह से सैंपल क्या और किस तरह से कलेक्ट कर रहे हैं इस पर वारदात का रिजल्ट निर्भर करता है। उन्होंने कहा कि भारत में डीएनए के लिए बहुत संख्या में मामले आ रहे हैं। इस पर योग्यता और क्षमता के आधार पर ही डीएनए होने चाहिए। ताकि अपराध करने वाले को पकड़ने में मदद मिल सके।
डॉ वीके कश्यप, पूर्व मुख्य साइंटिस्ट फॉरेंसिक विज्ञान भारत
हिमाचल प्रदेश राज्य FSL द्वारा साझा किए गए 3 साल के आंकड़ों के मुताबिक यौन उत्पीड़न के कुल मामलों में से 44% डीएनए प्रोफाइलिंग के लिए प्राप्त हुए हैं। दुर्भाग्यपूर्ण डीएनए विश्लेषण के लिए अभी भी 900 मामलों की संख्या लंबित है। जिनमें से 14% मामले यौन हमले के पीड़ितों के हैं। हिमाचल प्रदेश की फोरेंसिक लैब में हर महीने 30 से 35 मामले डीएनए के लिए आते हैं। जिनमें से 25 से 30 मामलोंपर ही काम हो पाता है।
डॉ अरुण शर्मा, राज्य फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी के निदेशक
हिमाचल प्रदेश में फोरेंसिक साइंस लैबोरेटरी (FSL) राज्य और रेंज फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज (RFSL) में नए डीएनए प्रौद्योगिकी उन्नयन करने के लिए तैयार हैं। जो विश्लेषण किए जा रहे मामलों की संख्या में वृद्धि करेगी। जुंगा में FSL देश भर में अपनी सभी प्रयोगशालाओं में अच्छी तरह से सुसज्जित डीएनए सुविधाओं की शुरूआत करने वाला देश है। इसका उद्देश्य डीएनए प्रोफाइलिंग प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए है जिससे तेजी से जांच और परीक्षण हो सकेगा। इस प्रकार आपराधिक न्याय प्रणाली को तेजी से ट्रैक किया जा सकेगा।