337 साल पुराना रामपुर बुशहर का अंतरराष्ट्रीय लवी मेला कल यानी 11 नवंबर से शुरू हो रहा है। यहां पर सदियों से लोग सामान की खरीददारी और बेचने के लिए पहुंचते हैं। मेले में ऊनी कपड़े, पीतल के बर्तन, औजार, बिस्तर, मेवे, शहद, सेब, न्योजा, सूखी खुमानी, अखरोट, ऊन, पशम का जमकर कारोबार होता है। लवी अच्छी नस्लों के घोड़ों की खरीद-फरोख्त के लिए भी मशहूर है।
लोइया से पड़ा था लवी मेले का नाम:
लवी मेले में एक तरफ पारंपरिक वेशभूषा नज़र आती है तो दूसरी ओर लोक संगीत के लिए सांस्कृतिक दल भी यहां पहुंचतें हैं। मेले के लिए लवी में व्यापारियों ने भी डेरा डाल दिया है। लवी मेले का नाम उत्तरी क्षेत्र में पहने जाने वाले पारंपरिक कोटनुमा ऊनी वस्त्र जिसे लोइया कहा जाता है इसी के नाम पर मेले का नाम लवी पड़ा। लवी का मेला सतलुज नदी के किनारे बसे रामपुर में आयोजित किया जाता है।
मेले में पहाड़ी संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। यहां लोग बुशहरी टोपियां पहनते हैं जो कि काफी आकर्षक लगती है। 1911 से कुछ वर्ष पूर्व रामपुर में तिब्बत और हिंदुस्तान के बीच व्यापार शुरू हुआ। उस समय राजा केहर सिंह ने तिब्बत सरकार के साथ व्यापार को लेकर संधि की थी। व्यापार मेले में कर मुक्त व्यापार होता था। लवी मेले में किन्नौर, लाहौल-स्पीति, कुल्लू और प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से व्यापारी पैदल पहुंचते थे।
लवी मेले को 1985 में मिला अन्यराष्ट्रीय मेले का दर्जा:
मुख्यमंत्री बनने के बाद वीरभद्र सिंह ने वर्ष 1985 में इस मेले को अंतरराष्ट्रीय मेला घोषित किया था। राज्यपाल लवी मेले का शुभारंभ करते हैं जबकि मुख्यमंत्री मेले का समापन करते हैं।