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आज ही के दिन बदला था प्रदेश BJP का राजनीतिक गणित, धूमल की हार रही बड़ी वज़ह

नवनीत बत्ता |

18 दिसंबर, 2017… ये वो तारीख़ जिस दिन हिमाचल में विधानसभा चुनावों के परिणाम आए थे और प्रदेश बीजेपी का राजनीतिक गणित पूरी तरह बदल गया था। एक ओर जहां कांग्रेस सरकार को शिकस्त मिली, वहीं बीजेपी की भी बड़ी ज़मात इन परिणामों के साथ धाराशाई हो गई। इसकी बड़ी वज़ह ये रही कि बीजेपी के घोषित मुख्यमंत्री कैंडिडेट प्रेम कुमार धूमल की चुनाव में हार हुई।

यानी साफ लहज़े में कहा जा सकता है कि आज जो प्रदेश में युवा सरकार काम कर रही है। उसे बनने की बड़ी वज़ह धूमल की हार रही। इसके साथ बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की उस बात को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता, जिसमें सिराज के विधायक को महत्वपूर्ण भूमिका देने की बात हुई थी।

चुनाव परिणामों के दौरान राजनीतिक गणित ऐसे बदला कि मानों भूचाल आ गया हो। दरअसल, मुख्यमंत्री के जिस चेहरे के नाम पर बीजेपी ने प्रदेश में चुनाव लड़ा वो चेहरा हार चुका था। इतना ही नहीं बल्कि उसके साथ ही उनके बहुत से समर्थक नेता भी अपने चुनाव हार चुके थे। कुछ एक जो जीत कर आए भी वे भी इस पद के लिए कुछ नहीं बोल सकते थे। निगाहें विकल्प तलाश रही थी और धूमल के बाद दौड़ में सिर्फ जगत प्रकाश नड्डा और जयराम का ही नाम था।

बाद में अमित शाह के बात पर फाइनल मुहर लगी औऱ सिराज से जीत कर आए जयराम ठाकुर को मुख्यमंत्री की गद्दी सौंप दी गई। यहां तक धूमल के हारने औऱ नए चेहरे के मुख्यमंत्री बनने से कई नेताओं का फ़ायदा भी हुआ। जो चेहरे शायद कभी विधायक तक ही सिमित रहते उन्हें मंत्रिमंडल में जगह मिली और धूमल के समर्थक नेताओं को साइडलाइन किया गया। हालांकि, कुछ नेताओं को कड़ी मशक्कत के बाद पद दिया गया, लेकिन ये पद उस स्तर का नहीं है जो शायद धूमल सरकार में हो सकता था।

धूमल की लोकप्रियता पर वार!

आज जब धूमल की हार को एक साल पूरा हो चुका है तो इसी बीच इस एक साल में उनकी लोकप्रियता पर भी कुछ अस़र जरूर पड़ा है। या फिर यूं भी कहा जा सकता है कि मौजूदा सरकार ने धूमल की लोकप्रियता को घटाने और उनके गुट को साइडलाइन देने में कोई क़सर नहीं छोड़ी। इसका एक उदाहरण धूमल के गृह क्षेत्र हमीरपुर में देखा जाने लगा है। क्योंकि यहां जिन दीवारों पर से धूमल के पोस्टर कभी हटा नहीं करते थे, आज वे भी बदल दिए गए हैं। जो गाड़ियां अक्सर समीरपुर में खड़ी दिखा करती थीं, वे भी यहां से ग़ायब हैं।

यहां तक कि धूमल के जो समर्थक नेता हैं जैसे गुलाब सिंह ठाकुर, कर्नल सिंह, रणधीर शर्मा, बलदेव शर्मा वे भी आज सरकार की लाइन से ग़ायब नज़र आ रहे हैं। अब जब लोकसभा चुनाव सिर पर हैं तो ऐसे में धूमल परिवार पर भी ख़ासी नज़र बनी है कि यहां क्या उलटफेर होता है…।। वहीं, धूमल की नाम पर क्या इस बार भी बीजेपी कुछ चुनावी खेल करती है या फिर उन्हें भी चोर दरवाजे से बाहर धकेल दिया जाता है…???