मौत तो एक दिन सभी को आनी है, लेकिन शहादत हर किसी को नसीब नहीं होती। भगत सिंह के ये अल्फाज आज भी हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के एक गावं में गूंजते हैं। इस गांव के हर घर से फौजी निकाला है। ये गावं है मकड़ोली जो जिला कांगड़ा के इंदौरा तहसील में पड़ता है। यहां हर मां को एक ऐसा बेटा नसीब हुआ जिसे अपने सीने पर गोलियां तो मंजूर थी, लेकिन अपने वतन की जमीन पर दुश्मनों के कदम मंजूर नहीं थे।
इस गावं में शहीदों को याद करने के लिए किसी दिन किसी तारिख या किसी त्यौहार की जरूरत नहीं होती बल्कि यहां हर रोज उन्हें मंदिरों में पूजा जाता है। मंदिरों में उन वीर सपूतों की आरती होती है, जिन्होंने देश के लिए सब कुछ कुर्बान कर दिया। मकड़ोली गांव में 85 फीसदी लोग सेना में सेवाएं दे चुके हैं और इतने ही सेना में सेवा दे रहे हैं। इस गावं का पहला घर जितेंद्र पठानिया का है। जितेंद्र 2006 में कश्मीर में एक कॉम्बिंग ऑपरेशन में शहीद हो गए थे। वे अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे।
जितेंद्र के परिवार से बाप और दादा ने पहले और दूसरे विश्व युद्ध में शहादत पाई तो भाई 62 और 71 के युद्ध में दुश्मन से लोहा ले चुके हैं। जितेंद्र अपने परिवार से चौथे शहीद हैं। जितेंद्र की मां ने कहा कि बेटे की याद में उन्होंने मंदिर बनवाया है। जितेंद्र ने देश के लिए जान कुर्बानी दी है तो वो किसी भगवान से कम नहीं है। इस मंदिर में सुबह-शाम पूजा की जाती है।
जितेंद्र इस गांव में अकेले शहीद नहीं हैं। गावं में ही एक और शहीद नायक योगराज का मंदिर भी है। योगराज 2005 में शहीद हो गए थे। इस गांव के और शख्स जो खुद सेना से रिटायर्ड हैं और उनकी सात पीढ़ियों ने सेना में सेवाएं दी है। सूबेदार जगदेव सिंह ने बताया कि अकेले उनके ही परिवार के सात लोग देश के लिए शहीद हुए हैं। इनके परिवार से 12 लोग सेना में सेवाएं दे चुके हैं और 6 सदस्य अभी भी सेना में कार्यरत हैं। अभी उनका बेटा भी सेना में सेवाएं दे रहा है। उन्होंने बताया कि इस गांव से अब तक 12 जवान शहीद हो चुके हैं, लेकिन यहां कि युवा पीढ़ी का सेना में जाने का जोश और जज्बा कम नहीं हुआ है।