साल 2018 में पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह, सांसद शांता कुमार, पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल तीन ऐसे चेहरे प्रदेश में रहे जिनके बिना राजनैतिक कदमताल पूरी तरह एक तरह से ख़त्म मानी जाती थी। वहीं, सतपाल सत्ती, सुखविंदर सिंह सुक्खू जैसे नेता कहीं ना कहीं अपनी संगठनात्मक गतिविधि के लिए इन नेताओं की तरफ देखते थे। वहीं, जीएस बाली, जगत प्रकाश नड्डा जैसे चेहरे भी रहे जो अपनी अपनी पार्टियों के भीतर तेजी से समीकरण बदलने वाले नेता के रूप में निकल कर सामने आए हैं।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए साल 2018 में 92 साल के पंडित सुखराम अभी भी चुनौती बने नज़र आ रहें हैं । वहीं, पूर्व सांसद महेश्वर सिंह ,पूर्व मंत्री गुलाब सिंह की राजनीतिक कुशलता भी पूरा साल जयराम को स्तिथि पर कड़ी नज़र रखने पर मजबूर करती रही। सांसद राम सवरूप शर्मा का नाम स्पष्ट तौर पर उमीदवार के रूप में घोषित करना भी मंडी में जयराम के लिए किसी चुनौती से कम नहीं रहा।
साल 2018 में वीरभद्र सिंह और सुक्खू में तालमेल तो नहीं बना लेकिन, एक तरफ साल का अंत पूरा होते जरूर नज़र आया। कांग्रेस की 3 राज्यों में विधानसभा में जीत कांग्रेस को कुछ रहत जरूर मिली है। वहीं, लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी के लिए वीरभद्र सिंह की 2018 के अंत तक चुप्पी कहीं ना कहीं बड़ी परेशानी का कारण भी हो सकती है। साल के अंत में वीरभद्र का मंडी से चुनाव लड़ने को हामी भरना भी बीजेपी के जहां सोचने पर मजबूर करने वाली स्थिति कर गया। वहीं, कांग्रेस के लिए मंडी में संजीवनी का काम कर गया।
इन सबके बीच प्रेम कुमार धूमल की भूमिका पूरा साल चुप्पी साधे रही लेकिन साल का अंत होते होते ही उनकी सक्रियता एक बार फिर नई पीड़ी को ये जताने मैं कामयाब रही की 'टाइगर अभी भी जिन्दा' है। अब देखना ये है कि नए साल में बीजेपी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की राजनीति पार्टियों और युवाओं को क्या दिशा देगी। क्योंकि प्रदेश में 2019 का चुनाव जहां बीजेपी के लिए इज्जत बचाने वाला होगा। वहीं, कांग्रेस को अपनी स्थिति को सुधारने का बड़ा मौका टिकट वितरण कर सकता है।