शिमला स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज अपनी अद्भुत कारीगिरी के लिए विश्वविख्यात है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज का इतिहास बेहद गौरवमयी रहा है। इस संस्थान के भवन का निर्माण वर्ष 1884 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने करवाया था। इसे वाइसरीगल लॉज भी कहा जाता है। 1888 में एडवांस स्टडी के लिए बिजली की व्यवस्था की गई। शिमला में शायद यह पहला भवन था जहां बिजली पहुंची थी। शिमला में आने वाले सभी वायसराय भी इसी भवन में ठहरा करते थे।
बताया जाता है की आजादी की लड़ाई के समय इस संस्थान के भवन में ही कई ऐतिहासिक बैठकें हुई और अहम फैसले लिए गए। पाकिस्तान के साथ 1945 में शिमला समझौता इसी भवन में हुआ था। पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान को देश से अलग करने का फैसला यहीं लिया गया। देश को आजादी के बाद इस भवन को राष्ट्रपति निवास बना दिया गया। गर्मियों के दिनों में भारत के राष्ट्रपति इसी भवन में छुट्टियां मनाने आते थे। भारत के दुसरे राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन ने इस भवन को उच्च शिक्षा और शोध संस्थान बनाने का फैसला लिया। इसके बाद राष्ट्रपति निवास को यहां से बदलकर छराबड़ा स्थित रिट्रील किया गया।
इस संस्थान में विभिन्न राज्यों से कई शोधकर्ता रिसर्च के लिए आते हैं। जल संरक्षण के पुराने सिस्टम के लिए भी यह संस्थान विख्यात है। अंग्रेजों ने इस भवन का निर्माण ऐसी कारीगिरी से करवाया है कि बारिश का पानी भवन के नीचे बने एक टैंक में चला जाता है। जिसको इस्तेमाल में लाया जाता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडी शिमला में स्थित एक प्रतिष्ठित शोध संस्थान है। इसे 1964 में भारत सरकार के मंत्रालय द्वारा स्थापित और 20 अक्टूबर 1965 से काम करना शुरू कर दिया था। वर्तमान में इं डियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज में मानविकी कला और सौंदर्य तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन धर्म और दर्शन का अध्ययन करवाया जाता है।