मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर ऋषि जमदग्नि की तपोस्थली तत्तापानी में सोमवार को हजारों श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। तातापानी में गर्म पानी के चश्मों में स्नान के बाद श्रद्धालुओं ने तुला दान भी करवाया। हालांकि कोल डेम बनने के बाद ये तीर्थ स्थल को डुब गया है। बाबजुद इसके लोगों की संख्या तत्तापानी में जाने से कम नहीं हुई है।
माना जाता है कि भज्जी क्षेत्र के राजा सहस्त्रबाहू ने भगवान परशुराम के पिता जमदग्नि ऋषि पर आक्रमण किया। उस समय परशुराम मणिकर्ण में गर्म पानी के चश्मे में स्नान कर रहे थे। जैसे उन्हें हमले की सूचना मिली तो वह सीधे तत्तापानी के लिए रवाना हुए। तत्तापानी पहुंचकर ही उन्होंने धोती निचोड़ी थी। धोती को निचोड़ने पर जहां-जहां छींटे पड़े, वहां गर्म पानी के चश्मे फूट पड़े।
उधर, वैज्ञानिकों का मानना है कि तत्तापानी में गंधक युक्त गर्म पानी के इन चश्मों में स्नान करने से कई तरह के चर्म रोग और जोड़ों के दर्द ठीक हो जाते हैं।
तत्तापानी में रेजरवायर बनने से पहले प्राकृतिक गर्म पानी के चश्मे हुआ करते थे, जहां श्रद्धालु स्नान व दान का महत्व मानते थे। प्राकृतिक चश्मे डूब गए हैं, लेकिन आस्था में कोई कमी नहीं हुई है। सरकार व प्रशासन के प्रयासों से जो कृत्रिम चश्मे बनाए गए हैं, अब वहां पर श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगाते हैं। मान्यता है कि यहां स्नान करने से ग्रह शांत होते हैं। साथ ही यहां स्नान करने से चर्म रोगों से भी मुक्ति मिलती है।