हिमाचल प्रदेश राज्य विद्युत बोर्ड कर्मचारी यूनियन ने बोर्ड के उच्चाधिकारियों पर आरोप लगाया है कि विद्युत बोर्ड लिमिटिड का प्रबन्धक वर्ग (उच्चाधिकारी) बिजली बोर्ड के कर्मचारियों से काम करवाने की बजाय निजी कम्पनियों/ठेकेदारों से काम करवाने में बहुत ज्यादा उत्सुकता दिखा रहे हैं। जबकि काफी लम्बे अरसे से बिजली बोर्ड के कर्मचारी ये काम खुद करते रहे हैं। बिजली बोर्ड में करोड़ों रुपये की लागत से बनाई गई वर्कशॉपों में खराब ट्रांसफार्मरों की मुरम्मत करवाने की बजाय निजी कम्पनियों को टेंडर दिए जा रहे हैं।
ट्रांसफार्मर का कितना नुक्सान हुआ है, ट्रांसफार्मर को खोले बगैर इसका आकलन लगाकर इन्हें मुरम्मत के लिए ठेकेदारों को दिया जा रहा है। औसतन 25के.वीए. ट्रांसफार्मर की मुरम्मत का रेट कम से कम लगभग 25000. 63केवी.ए. ट्रांसफार्मर का रेट लगभग 35000., 100के.वी.ए. ट्रांसफार्मर का रेट लगभग 45000., 250के.वी.ए. ट्रांसफार्मर का रेट लगभग 80000. तय करके करोड़ों रुपयों का चूना बिजली बोर्ड को लगाया जा रहा है। प्रदेश स्तर में मण्डल स्तर के अधिकारी भी अपने स्तर पर इस तरीके के टेंडर करके बिना रोक टोक मोटी कमाई करने के काम में लगे हुए हैं।
चंबा में तो बिजली बोर्ड की वर्कशॉप और मशीनरी ही ठेकेदार के हवाले कर दी गई है। वहीं पर ट्रांसफार्मरों की मुरम्मत का काम किया जा रहा है। बिजली बोर्ड में छोटी-बड़ी लाईनों का काम तो ऊंची दरों पर ठेकेदारों के माध्यम से करवाया जा रहा है। लेकिन खराब सिंगल फेज़ एनर्जी मीटरों को बदलने या पुराने इलेक्ट्रो मेकेनिकल मीटरों को बदलने का काम भी मोटी कमाई के चक्कर में बोर्ड के कर्मचारियों से न करवाकर ठेकेदारों से करवाया जा रहा है। विद्युत वृत हमीरपुर के अन्तर्गत नादौन में सिर्फ सिंगल फेज़ एनर्जी मीटर बदलकर बॉक्स में फिट करने के लिए 840 रुपये प्रतिमीटर के हिसाब से टेंडर किया गया है। जबकि जिला मंडी में चीफ इंजीनियर एम.एम. द्वारा ही 25152 सिंगल फेज़ एनर्जी मीटरों को बदलने के लिए प्रति मीटर 982 रुपये के हिसाब से टेंडर किया गया है, जिसकी कुल रकम 2,46,99,264 रुपये बनती है।
हैरानी की बात यह है कि बिजली मीटर और मीटर बॉक्स जो विभाग के द्वारा दिया जाएगा की कुल कीमत मिलाकर 849 रुपये (496$353) बनती है, जबकि बदलने का खर्चा ही 800 से 1000 रुपये के बीच आ रहा है। अगर अधिकारियों से इन ऊंची दरों के विषय में बात की जाए तो बोलते हैं कि यह केन्द्र की योजना है, क्या केन्द्र की योजना का मतलब लूट-खसूट करना है। योजना केन्द्र की हो या राज्य की, उसका अगर सही तरीके से उपयोग किया जाए तो बिजली बोर्ड सोने की चिडि़या बन सकता है। लेकिन इस तरीके से की जा रही लूट-खसूट की जांच क्या राज्य सरकार किसी एजेंसी से करवाएगी? अगर करवाएगी, तो दूध का दूध और पानी का पानी सामने आएगा।
अब प्रश्न उठता है कि अगर बिजली मीटर बदलने का कार्य भी बिजली कर्मचारियों से नहीं करवाना है तो बिजली कर्मचारी क्या करेंगे? एक बिजली कर्मचारी औसतन एक दिन में कम से कम 10 मीटर बदलता है और अगर इलैक्ट्रोमेकेनिकल मीटरों की जगह इलेक्ट्रोनिक मीटर नहीं लगे हैं या खराब मीटर नहीं बदले गए हैं तो इसकी वजह बिजली बोर्ड द्वारा मीटर उपलब्ध न करवाना रहा है। बिजली मीटर उपलब्ध हों तो कर्मचारी खुद इन मीटरों को बदल सकते हैं।
बिजली मीटर जो बिजली बोर्ड की आमदन का स्त्रोत है उसको बदलने का कार्य किसी दूसरी एजेंसी को नहीं देना जाना चाहिए क्योंकि इससे बिजली चोरी का अदेंशा भी बना रहेगा। यूनियन बिजली मीटर लगाने और बिजली मीटर बदलने जैसे संवदेनशील कार्य को किसी निजी एंजेसी को देने की बजाय अपने कर्मचारियों के माध्यम से करवाने की मांग करती है और इस टेंडर प्रक्रिया की जांच करवाने की मांग करती है।