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ऊना में टिकट के दावेदारों का शोर, लेकिन सत्ती की सत्ता रहेगी कायम

नवनीत बत्ता |

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र हर विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदारों की फेहरिस्त काफी लंबी हो चली है। सभी को लगता है कि फलां सीट पर उनकी जीत पक्की है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही रहती है।

अब ऊना की सदर सीट को ही ले लीजिए। बीजेपी के इस अभेद्य किले के दावेदार कई हैं। यहां से तीन बार के विधायक सतपाल सिंह सत्ती का टिकट लगभग तय है। बावजूद बीजेपी से ही क़रीब आधा दर्जन टिकट के दावेदार खड़े हो चुके हैं। यही नहीं, इस विधानसभा क्षेत्र में अर्से से गुटबाजी की शिकार रही कांग्रेस से भी दर्जन भर उम्मीदवार ताल ठोक रहे हैं।

ऊना हलके से बीजेपी 1993 से लगातार विजय पताका लहराए हुए है। इसमें तीन बार वर्तमान विधायक सतपाल सिंह सत्ती अपने जीत का परचम लहरा चुके हैं। बीजेपी के अभेदय दुर्ग को भेदने के लिए ब्लॉक कांग्रेस रणनीति बनाकर जनसंपर्क में जुटी हुई है। ऊना सदर कांग्रेस द्वारा चलाए जा रहे अभियानों में काफी एकजुटता देखने को मिल रही है। इस एकुजटता का प्रमाण सदर कांग्रेस द्वारा पथ यात्रा में दिखा चुकी हैं। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि नजदीक आ रहे विस चुनावों में हाईकमान जिसे भी टिकट देगी, एकजुट होकर कांग्रेस उसी का साथ देकर जीत का परचम लहराएगी, लेकिन कांग्रेस नेताओं की कथनी और करनी का हिसाब तो आने वाले विस चुनावों में जगजाहिर हो पाएगा। क्योंकि, इतिहास बताता है कि यह सीट कई बार कांग्रेस की आपसी गुटबाजी की वजह से बीजेपी के खाते में जाता रहा है। ऊपर से वर्तमान में जो पार्टी के भीतर माहौल है, उसे देखते हुए कुछ कहा भी नहीं -जा सकता।

कांग्रेस के विधायक पद के टिकट के चाहवानों में प्रदेश कांग्रेस के सदस्य सतपाल सिंह रायजादा, एनएसयूआई के प्रदेशाश्यक्ष एवं जिला पार्षद करूण शर्मा, कांगड़ा बैंक के निदेशक राजीव गौतम, ईशान ओहरी, दीपक लठ, देवेंद्र वत्स, जगतराम शर्मा समेत कई शामिल हैं। वहीं बीजेपी टिकट के दावेदारों में सत्ती के अलावा जिला पार्षद पंकज सहोड़, अश्वनी कुमार लूग्गा, डॉ. रामपाल सैणी, जिला भाजपा अध्यक्ष बलवीर बग्गा  समेत कई अन्य परोक्ष रूप से टिकट कर दावेदारी जता रहे हैं। लेकिन, सतपाल सिंह सत्ती का टिकट काटना इतना आसान नहीं है।

सदर कांग्रेस पिछले कई वर्षों से गुटबाजी की भेंट चढ़ रही है, जिसका सीधा असर बीजेपी को जीत दिलाने में सार्थक सिद्ध होता है। इस बार तो गुटबाजी ना सिर्फ विधानसभा स्तर पर है बल्कि प्रदेश प्रदेश स्तर पर है। संगठन बनाम सरकार के झगड़े जगजाहिर हैं। कांग्रेस के दिग्गज नेता चुनाव मैदान में अपने ही सहयोगियों से भिंड़े हुए हैं। इस लिहाज से इस बार यह सीट तीन बार से लगातार विधायक रहे सतपाल सिंह सत्ती के खाते में आराम से जाती दिखाई दे रही है।

सतपाल सिंह सत्ती अपनी स्वच्छ छवि के कारण पूरे प्रदेश में जाने जाते हैं। हांलाकि, विरोधी उनकी कार्यशैली को लेकर हमेशा उन्हें निशाने पर रखते हैं। कुछेक स्थानों पर उनके कड़वे बोलों से पार्टी के कार्यकर्ताओं को ठेस भी पहुंची हैं। प्रशासनिक, मुंह फट बोली तथा व्यवहारिक छवि सतपाल सिंह सत्ती के फॉलोवर की संख्या में जरूर कमी ला रही है। लेकिन, संगठनात्मक क्षमता में सतपाल सिंह सत्ती का कोई सानी नहीं हैं। उनकी संगठनात्मक शैली की कायल बीजेपी हाई कमान भी है।