शिवरात्रि के पर्व पर सुबह से ही मंदिरों में शिव भक्तों का जन सैलाब उमड़ रहा है। हर हर महादेव, बम बम भोले के नारों से मंदिर गूंज रहे हैं। अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए भक्त मंदिर पहुंच रहे हैं शिवलिंग पर जलाभिषेक कर शिव की अनुकंपना पाने की कामना कर रहे हैं। कुछ ऐसी ही धूम कांगडा में देखने को मिली। जहां मंदिर बैजनाथ मंदिर में भी शिवरात्रि पर्व को धूम-धाम से मनाया गया।
यहां प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि पर्व पर शिवरात्रि पर झारखंड में मेला आयोजित किया जाता है तथा हजारों श्रद्धालु इस 30 दिवसीय महोत्सव के दौरान उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और पूरे देश के विभिन्न भाग से लोग बिहार के सुल्तानगंज से गंगा नदी के पवित्र जल ले करके वहां से 105 किमी दूर बैद्यनाथ धाम की यात्रा करते हैं व भगवान शिव के भक्त शिवलिंग पर पवित्र जल अर्पण करते हैं। राज्यस्तरीय बैजनाथ शिवरात्रि महोत्सव का आगाज शिव मंदिर में हवन यज्ञ और शोभायात्रा के साथ हुआ। विश्राम गृह से आरंभ होने वाली शोभायात्रा शिव मंदिर तक गई।
आपको बता दें कि बैजनाथ शिव मंदिर हिमाचलके कांगड़ा जिले में शानदार पहाड़ी स्थल पालमपुर में स्थित है। 1204 ई. में दो क्षेत्रीय व्यापारियों 'अहुक' और 'मन्युक' द्वारा स्थापित बैजनाथ मंदिर पालमपुर का एक प्रमुख आकर्षण है और यह शहर से 16 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर की स्थापना के बाद से लगातार इसका निर्माण हो रहा है। यह प्रसिद्ध शिव मंदिर पालमपुर के 'चामुंडा देवी मंदिर' से 22 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। बैजनाथ शिव मंदिर दूर-दूर से आने वाले लोगों की धार्मिक आस्था के लिए महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह मंदिर वर्ष भर पूरे भारत से आने वाले भक्तों, विदेशी पर्यटकों और तीर्थ यात्रियों की एक बड़ी संख्या को आकर्षित करता है।
पौराणिक कथा
त्रेता युग में लंका के राजा रावण ने कैलाश पर्वत पर शिव के निमित्त तपस्या की। कोई फल न मिलने पर उसने घोर तपस्या प्रारंभ की। अंत में उसने अपना एक-एक सिर काटकर हवन कुंड में आहुति देकर शिव को अर्पित करना शुरू किया। दसवां और अंतिम सिर कट जाने से पहले शिवजी ने प्रसन्न हो प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया। उसके सभी सिरों को पुर्नस्थापित कर शिव ने रावण को वर मांगने को कहा। रावण ने कहा मैं आपके शिवलिंग स्वरूप को लंका में स्थापित करना चाहता हूं। आप दो भागों में अपना स्वरूप दें और मुझे अत्यंत बलशाली बना दें। शिवजी ने तथास्तु कहा और लुप्त हो गए। लुप्त होने से पहले शिव ने अपने शिवलिंग स्वरूप दो चिह्न रावण को देने से पहले कहा कि इन्हें जमीन पर न रखना।
रावण दोनों शिवलिंग लेकर लंका को चला। रास्ते में 'गौकर्ण' क्षेत्र (बैजनाथ) में पहुंचने पर रावण को लघुशंका का अनुभव हुआ। उसने 'बैजु' नाम के एक ग्वाले को सब बात समझाकर शिवलिंग पकड़ा दिए और शंका निवारण के लिए चला गया। शिवजी की माया के कारण बैजु उन शिवलिंगों के भार को अधिक देर तक न सह सका और उन्हें धरती पर रखकर अपने पशु चराने चला गया। इस तरह दोनों शिवलिंग वहीं स्थापित हो गए। जिस मंजूषा में रावण ने दोनों शिवलिंग रखे थे, उस मंजूषा के सामने जो शिवलिंग था, वह 'चंद्रभाल' के नाम से प्रसिद्ध हुआ और जो पीठ की ओर था, वह 'बैजनाथ' के नाम से जाना गया। मंदिर के प्रांगण में कुछ छोटे मंदिर हैं और नंदी बैल की मूर्ति है। नंदी के कान में भक्तगण अपनी मन्नत मांगते है।
पांडव नहीं बना पाए पूरा मंदिर
द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास ने दौरान इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि सैकड़ों कोशिशों के बाद भी पांडव इस मंदिर को पूरा नहीं बना पाए थे। स्थानीय लोगों के अनुसार इस मंदिर का शेष निर्माण कार्य 'आहुक' एवं 'मनुक' नाम के दो व्यापारियों ने 1204 ई. में पूर्ण किया था और तब से लेकर अब तक यह स्थान 'शिवधाम' के नाम से जाना जाता है।