छात्र संगठन एसएफआई ने विरोध प्रदर्शन के माध्यम से प्रदेश सरकार और विश्वविद्यालय के प्रशासन को चेताया है कि आउटसोर्स के माध्यम से जो भर्तियां विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा प्रदेश सरकार के इशारे पर की जा रही हैं। एसएफआई ने मांग की है कि उन तमाम भर्तियों को निरस्त किया जाए। क्योंकि, विश्वविद्यालय प्रशासन प्रदेश के शिक्षा मंत्री के इशारे पर विश्वविद्यालय में कर्मचारियों की भर्ती आउटसोर्स पॉलिसी से कर रहा है जिसके तहत उत्तम हिमाचल नाम की एक फर्म जो कि ABVP के एक भूतपूर्व नेता की है और वह व्यक्ति इस विश्वविद्यालय में ABVP की तरफ से SCA के पदाधिकारी रह चुके हैं।
उत्तम हिमाचल की इस फर्म को बिना किसी भी विज्ञापन के वह सिंगल कोटेशन के आधार पर यह ठीक ठेका सौंपा गया है। जबकि सरकार का यह नियम है कि जब भी किसी को कोई ठेका सौंपते हैं तो कम से कम तीन कंपनियों के द्वारा टेंडर भरे जाने चाहिए उसी के बाद किसी भी कंपनी को ठेका सौंप सकते हैं।
अलबत्ता आउटसोर्सिंग के लिए ये टेंडर मार्च अप्रैल 2018 में पहले ही हो चुका था परंतु शिक्षा मंत्री के आदेश पर हमारे विश्वविद्यालय के प्रशासन ने इस टेंडर के माध्यम से ही उत्तम हिमाचल को ये भर्तियां करने के लिए नियुक्त किया गया। उत्तम हिमाचल नाम की कंपनी का ओनर सीधे तौर RSS/BJP/ABVP के साथ जुड़ा हुआ है। यह चीज दर्शाती है कि हमारा विश्वविद्यालय प्रशासन और सरकार की मिली भक्त के द्वारा इस विश्वविद्यालय में भगवाकरण के एजेंडे को बढ़ावा देने की फिराक में हैं । विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा 6 JOA, 3 वर्क इंसपेक्टर, 1 बस ड्राइवर इन तमाम लोगों की भर्तियां सरकारी नियमों को ताक पर रख कर की गई है जो कि ये तमाम बातें संकेत करती है कि हमारा विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश सरकार अपने शिक्षा के निजीकरण व्यापारीकरण और सांप्रदायिककरण करने में लगी हुई है।
एसएफआई इन तमाम लोगों को यह चेतावनी देना चाहते हैं कि यदि विश्वविद्यालय में लागू की जा रही ठेकाकरण की पॉलिसी को यदि रोका नहीं गया और ठेके पर लगाए गए तमाम संघ के कार्यकर्ता व इनके बीच लगों को नहीं हटाया गया तो सफाई आने वाले समय प्रशासन और प्रदेश सरकार के खिलाफ एक व्यापक और उग्र आंदोलन तैयार करेगी। जिसके अंतर्गत धरना प्रदर्शन, रैलियां , घेरा डालो डेरा डालो, शिक्षा मंत्री का घेराव ,मुख्यमंत्री का घेराव जैसे तमाम विरोध प्रदर्शन के तरीकों के साथ एसएफ़आई इसका विरोध करेगी जिसका जिम्मेदार खुद विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश सरकार होगी।