छात्र अभिभावक मंच ने निदेशक उच्चतर शिक्षा से मांग की है कि वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय की 2014 की गाइडलाइनज़ और शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के अनुसार 15 दिन के अंदर निजी स्कूलों में पीटीए का गठन करें। इसके लिए वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय की गाइडलाइनज़ और शिक्षा का अधिकार कानून के तहत तुरन्त अधिसूचना जारी करें। अगर पीटीए तय नियमों के अनुसार न बनी तो अभिभावक शिक्षा अधिकारियों की मोर्चेबन्दी शुरू कर देंगे।
मंच के संयोजक विजेंद्र मेहरा ने कहा है कि शिक्षा निदेशालय के अधिकारी पीटीए के मसले पर लाग लपेट कर रहे हैं। वे सिर्फ बयानबाजी से पीटीए के मसले से पल्ला झाड़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि शिक्षा का अधिकार कानून 2009 और मानव संसाधन विकास मंत्रालय 2014 की गाइडलाइनज़ स्पष्ट तौर से कहते हैं कि हर निजी स्कूल में सेशन शुरू होने के एक महीने के भीतर हर हाल में पीटीए का गठन होना चाहिए।
सेशन के लगभग 2 महीने होते आये लेकिन अभी तक प्रदेश के किसी भी स्कूल में पीटीए का गठन नहीं हो पाया है। नियमों के अनुसार पीटीए का गठन निजी स्कूल के नजदीक के सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य और हैडमास्टर की अध्यक्षता में होना चाहिए। पीटीए में 75 प्रतिशत हिस्सेदारी अभिभावकों की होनी चाहिए।
उन्होंने निदेशक उच्चतर शिक्षा से मांग की है कि प्रदेश के निजी स्कूलों में पीटीए के निष्पक्ष गठन को सुनिश्चित करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय की गाइडलाइनज़ और शिक्षा का अधिकार कानून के तहत सरकारी स्कूलों के प्रधानाचार्यों और हैडमास्टरों के नाम की अधिसूचना जारी की जाए। उन्होंने कहा कि अधिसूचना में पीटीए के गठन की प्रक्रिया का शेडयूल भी जारी किया जाएं और इसे टाइमबाउंड किया जाए।
इसी प्रक्रिया से पीटीए का गठन सम्भव है अन्यथा यह केवल एक औपचारिकता होगी और निजी स्कूलों की मनमानी चलती रहेगी। निजी स्कूलों में मनमानी, लूट और भारी फीसों पर अंकुश लगाने के लिए यही एक कारगर हथियार साबित हो सकता है यदि पीटीए का गठन निष्पक्षता के आधार पर हो। उन्होंने कहा कि नियमों के विरुद्ध बनी कोई भी पीटीए स्वीकार्य नहीं होगी। अगर नियमों के विरुद्ध पीटीए गठन हुआ तो छात्र अभिभावक मंच आंदोलन का रास्ता अख्तियार करेगा।