कल यानी 21 सितंबर से नवरात्रि शुरू होंगे और 30 सितंबर तक चलेंगे। नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा होती है. मान्यता है कि इन नौ दिनों में दुर्गा मां धरती पर आकर भक्तों का उद्धार करती हैं।
नवरात्र अश्विन महिने की पहली तारीख और सनातन काल से मनाया जा रहा है। माना जाता है कि सबसे पहले शारदीय नवरात्रों की शुरुआत भगवान राम ने समुद्र के किनारे की थी। लगातार नौ दिन के पूजन के बाद जब भगवान राम रावण और उसकी लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए गए थे और विजयी होकर लौटे। यही कारण है कि शारदीय नवरात्रों में नौ दिनों तक दुर्गा मां की पूजा के बाद दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। माना जाता है कि धर्म की अधर्म पर जीत, सत्य की असत्य पर जीत के लिए दसवें दिन दशहरा मनाते हैं।
नवरात्रि में दुर्गा पूजन का महत्व
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है. इस दिन मां दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है. सुंदर, अति गौर वर्ण होने के कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। महागौरी की आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं, समस्त पापों का नाश होता है, सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है।
कलश स्थापना का महत्व
शास्त्रों के अनुसार नवरात्र व्रत-पूजा में कलश स्थापना का महत्व सर्वाधिक है, क्योंकि कलश में ही ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र, नवग्रहों, सभी नदियों, सागरों-सरोवरों, सातों द्वीपों,चौंसठ योगिनियों सहित सभी 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास रहता है, तभी विधिपूर्वक कलश पूजन से सभी देवी-देवताओं का पूजन हो जाता है.
अखंड ज्योत का महत्व
अखंड ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहती है। ऐसा जरूरी नही है कि हर घर में अखंड ज्योत जलें। अखंड ज्योत के भी कुछ नियम होते हैं जिन्हें नवरात्र के दिनों में पालन करना होता है। हिन्दू परंम्परा के मुताबिक जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते हैं उन्हें जमीन पर सोना होता पड़ता है।
क्यों होता है 9 कन्याओं का पूजन
नौ कन्याएं को नौ देवियों का रूप माना जाता है। इसमें दो साल की बच्ची, तीन साल की त्रिमूर्ति, चार साल की कल्याणी, पांच साल की रोहिणी, छह साल की कालिका, सात साल की चंडिका, आठ साल की शाम्भवी, नौ साल की दुर्गा और दस साल की कन्या सुभद्रा का स्वरूप होती हैं। नवरात्र के नौ दिनों में मां अलग-अलग दिन आवगमन कर भक्तों का उद्धार करेंगी।