शिमला और मंडी सीट पर बीजेपी के समीकरण इस लिए बदलते नज़र आ रहे हैं। क्योंकि वीरभद्र सिंह को लेकर एक आम धारना थी की वो बेशक स्टार प्रचारक हैं लेकिन टिकट आवंटन से खुश नहीं होने के चलते वो पार्टी के लिए पूरी तरह से काम नहीं करेंगे। इस धारना को लेकर कांग्रेस कम लेकिन बीजेपी के नेता ज्यादा चल रहे थे।
लेकिन जैसे-जैसे चुनाव आगे बढ़ता गया उसी तरीके से कांग्रेस की राजनीतिक पकड़ और अधिक मजबूत होती नज़र आ रही है। जिसका कारण ना सिर्फ उम्मीदवारों का चयन है बल्कि वीरभद्र सिंह का समर्थन जिस तरह से इनको मिल रहा है।
शिमला लोकसभा की ही बात करें तो जयराम शिमला के जनता के लिए इतना महत्वपूर्ण फैक्टर आज भी नहीं है जितना की वीरभद्र सिंह का कांग्रेस से हैं। फर्क यहां इतना है की वीरभद्र सिंह को स्टार प्रचारक के रूप में कांग्रेस लगातार चला रही है और बीजेपी के प्रचार में धूमल नहीं हैं।
वीरभद्र सिंह की बात करें तो शिमला लोकसभा में वो लगातार चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं और उस सीट को उन्होंने अपनी प्रतिष्ठा के साथ जोड़ा हुआ है। यही कारण है की बीजेपी को यहां खासी मशक्कत करनी पड़ रही है।
उसी तरीके से पंडित सुखराम से पूरी राजनीतिक लड़ाई उन्होंने लड़ी है लेकिन आज उस लड़ाई को एक तरह से विराम लगा नज़र आ रहा है और ना सिर्फ वीरभद्र सिंह बल्कि उनके विधायक बेटे विक्रमदित्य सिंह भी आश्रय के चुनाव प्रचार में डटे हुए हैं और अपने प्रभाव के हर कार्यकर्ता को वो कांग्रेस को वोट करने की बात स्पष्ट कह रहें हैं।
इस तरह से ये कहा जा सकता है की अब चुनाव के अंतिम सात दिनों में वीरभद्र सिंह कांग्रेस के लिए क्या माहौल बनाकर देने वाले हैं इस पर निगाहें कांग्रेस से ज्यादा बीजेपी की अधिक टिक्की हुई नज़र आ रही हैं….।