मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है लेकिन चुनावों के समय जिस तरह मीडिया मैनेजमेंट चलती है ये किसी से छिपा नही है। हिमाचल प्रदेश में भी अब मीडिया पर सत्ता हावी होने लगी है। चुनावों का प्रचार चरम पर है तो मीडिया कुछ न कुछ तो लिखेगा। ख़बर है कि बीजेपी मीडिया मैनजमेंट सचिवालय से कर रही है। जहां एक आला अफ़सर व एक ओएसडी हर खबर पर नज़र गाड़े हुए हैं। इसी आधार पर विज्ञापन भी तय हो रहे हैं। जो सत्ता पक्ष के मनमुताबिक चलेगा उसको पैमाना बनाकर विज्ञापन मिल रहा है। जो थोड़ी ख़िलाफ़त कर रहे है उनको दरकिनार कर चुनावों के बाद देखने की बात कही जा रही है। जानकार तो ये भी बताते है कि सचिवालय के बंद कमरों में मीडिया मैनजमेंट चल रही है।
खबर तो ये भी है सत्ता के दलाल दलाली कर रहे हैं और अंदर की खबरें इधर उधर पहुंचा रहे हैं। कुछ चमचे चमचागिरी कर रहे हैं। उनकी रोटी ऐसे ही चलती है। पत्रकार भी बीजेपी और कांग्रेस पार्टी के बनकर रह गए हैं। कुछ बड़े पत्रकार तो प्रदेश भर का दौरा कर रहे हैं और नेताओं से खबरें लगाने के लिए धन की उगाही करने में लगे हुए हैं। पत्रकार की भी एक विचारधारा हो सकती है लेकिन पत्रकार की विचारधारा जब उसकी लेखनी पर हावी हो जाए तो वह पत्रकार नहीं चाटूकार बन जाता है। यदि लोकतंत्र को जिंदा रखना है तो पत्रकार को तो कम से कम इस चाटूकारिता से दूर ही रहना चाहिए।
उधर, कांग्रेस पार्टी में भी एक तगड़े महाशय विज्ञापन तय कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी ने इन्हें अमीरी का ईनाम देकर ही पद पर बिठाया है। उन्हीं का लिया हुआ हेलीकॉप्टर प्रचार में उपयोग हो रहा है। कुछ चहेते पत्रकार को विज्ञापन मिल गया है इसलिए हर दिन ऐसे पत्रकार राजीव भवन के आसपास मंडराते रहते हैं। खबरें भी उनके हिसाब से छप रही हैं। कुछ पत्रकार जिनको विज्ञापन नहीं मिला अभी बेचारे कांग्रेस कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। कुछ बरसाती मीडिया भी हिमाचल में सक्रिय है जो चुनाव के समय ही नज़र आता है उसके बाद गुमनाम हो जाता है। मज़े की बात तो ये है कि ये भी कुछ पैसा राजनीतिक दलों से ऐंठ कर ले जाते हैं क्योंकि उन्हीं के हिसाब से खबरें जो लगा देते है?