Follow Us:

बीजेपी के सामने जनता के सामने ख़रा उतरने की चुनौती, कांग्रेस के सामने प्रतिष्ठा को बचाने की

पी. चंद |

हिमाचल में बीजेपी को मिले प्रचंड बहुमत और कांग्रेस की चुनावों में हुई हार के बाद दोनों दलों के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। बीजेपी को हिमाचल की जनता ने उम्मीद से ज्यादा जनाधार दिया है जबकि कांग्रेस की उम्मीदें तक धराशायी हो गई। अब प्रचंड जीत के बाद बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती प्रदेश की 70 लाख से ज़्यादा आबादी की आकांक्षाओं पर खरा उतरने की है। युवाओं ने बीजेपी को दिल खोल कर वोट दिया।

मौजूदा वक़्त में हिमाचल में युवा बेरोजगारों की फ़ौज का आंकड़ा दस लाख से ज़्यादा पहुंच चुका है। इसके मद्देनज़र सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन युवाओं को रोजगार देने की होगी। सवाल यही है कि सीमित साधनों में ये कैसे संभव हो पाएगा। प्रदेश कमज़ोर आर्थिक स्थिति से गुज़र रहा है और 50 हज़ार करोड़ के कर्जे तले दबा है।

ऐसे में रोजगार सृजन कैसे होगा? प्रदेश के किसान, बागवान, गरीब, मरीज़ और आम जन को भी सरकार से काफ़ी उम्मीदें है। इन पर खरा उतरने के लिए जयराम सरकार को एक्स्ट्रा एफर्ट करने पड़ेंगे। इसके साथ ही प्रदेश के कई और जनता से जुड़े मुद्दे भी रहने वाले हैं, जिनपर सरकार को चौका लगाना होगा।

वहीं, दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी है जो चुनावी परिणाम आने के बाद कोमा में है। उसे समझ नहीं आ रहा है कि हिमाचल की जनता ने ये क्या कर दिया। नेता एक दूसरे की टांग खींचने में लग गए है। जिन नेताओं को जमीन पर रहकर काम करना चाहिए था वह सिर्फ़ हवा में उड़ते रहे और अब हार का ठीकरा एक दूसरे के सिर फोड़ने में लग गए है। कांग्रेस में सभी नेता इस चुनाव में कार्यकर्ता बन गए थे और सही में कोई नेता बनना नहीं चाहता है। प्रबंधन शून्य हो गया है, अनुशासन को लेकर तो कांग्रेस पार्टी हमेशा ही सवालों के घेरे में रही है। इस वक़्त कांग्रेस पार्टी को संजीवनी की ज़रूरत है लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये संजीवनी देगा कौन?

आलाकमान से लेकर प्रदेश नेतृत्व में कोई बड़ा चेहरा नज़र नहीं आ रहा है जो कांग्रेस की डूबती नैय्या को पार लगा सके। हिमाचल में भी वीरभद्र सिंह के अलावा कोई बड़ा चेहरा उभर नहीं पाया या उभरने नहीं दिया गया जो कांग्रेस के कुनबे को बढ़ा सके। इन चुनावों के बाद वैसे ही वीरभद्र सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर चर्चा का बाज़ार गर्म है। उधर, आनंद शर्मा हवा हवाई नेता माने जाते हैं और कुलदीप राठौर का इतना बड़ा कद नहीं कि वे पार्टी की डूबती नैय्या पार लगा सकें। ऐसे में कांग्रेस पार्टी का भगवान ही मालिक है।