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आजादी के 70 साल बाद भी छुआछूत के शिकार हैं हिमाचल के ये गांव

पी. चंद, शिमला |

देश के नेता जब बड़े मंचों से बुलंद आवाज में दलितों के हित की बात करते हैं, तो लगता है कि जैसे बदलाव की बयार चल रही है। उम्मीदों के चिराग रोशन हो रहे हैं। सत्तारूढ़ दल का ‘सब का साथ, सब का विकास’ का नारा भी उम्मीदों को चार चांद लगा देता है। तस्वीर कुछ इस अंदाज में पेश होती है, जैसे समाज में बराबरी आ रही है। दलित तबका अब अनदेखा नहीं है और उस की जिंदगी में खुशियां दस्तक दे रही हैं।

यह सपने सरीखा हो सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत ऐसी नहीं है। जातिवाद और छुआछूत की बीमारी ने 21वीं सदी में भी अपने लंबे पैर पसार रखे हैं। इस पर शर्मनाक बात यह है कि रूढि़वाद के बोझ से लोग निकलने को तैयार नहीं हैं। यों तो संविधान में सब को बराबरी का हक है। कोई दिक्कत आए, तो इसे लागू कराने के लिए सख्त कानून भी बने हुए हैं, इस के बावजूद गैरबराबरी धड़ल्ले से जारी है। ऐसा ही एक मामला राजधानी शिमला के साथ लगते बड़फर और चाइना गांव में सामने आया है जंहां आज भी लोग छुआछूत का शिकार हो रहे हैं।

आजादी के 70 सालों से आज तक इस गांव के लोगों को रास्ता की सुविधा नहीं मिली और 7 किलोमीटर पैदल चलकर चलोटी पहुंचना पड़ता है। फिर चाहे मरीज हो चाहे बच्चे हो चाहे बुजुर्गों कोई भी हो मरीजों को तो कंबल में बांधकर लाना पड़ता है पशु मर गए तो मर गए उनका कोई बारिस नहीं उन्हें उपचार के लिए अस्पताल नहीं ले जाया जा सकता। क्योंकि रास्ता नहीं है और जिस रास्ते को बनाने की बात की गई थी उस रास्ते में एक दबंग ने यह कहकर रास्ता देने से इंकार कर देता है कि मेरे घर में देवता है अगर मैं अपनी जगह से रास्ता दूंगा तो रुष्ट हो जाएगा। रवि कुमार ने इस मामले को राज्यपाल से उठाया।  राज्यपाल  ने एसपी शिमला को इस मामले पर तुरंत कार्यवाही करने के आदेश दिए थे जिस पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर जांच के आदेश दिए हैं।