हिमाचल प्रदेश, जिसे देवभूमि कहा जाता है । लेकिन अब ये देवभूमि हादसों की भूमि हो कर रह गयी है । आंकड़ों के नजरिये से देखें तो 2013 से 2019 के बीच करीब 300 लोग सिर्फ बड़े हादसों में काल के गाल में समां गये । यानि ये जो आंकड़े हैं वो पूरी कहानी बताने के लिये काफी है । ये तो सिर्फ बड़े हादसों की बात है, जबकि सड़कों पर हर दिन दुर्घटनाएं होती हैं औऱ लोगों की जान जाती है ।
हर बड़े हादसे के बाद राजनेता दौरे पर निकलते हैं । परिवार से मिलते हैं । जांच के आदेश दे दिये जाते हैं। और, कई बार आर्थिक सहायता देकर मरहम पट्टी लगाने का प्रयास करते हैं । तो क्या ये प्रयास काफी है । बिलकुल नहीं ।
सरकारी महकमें में सालों से ड्राइवर की कमी है । भर्ती प्रक्रिया सवालों के घेरे में रहती है । प्राइवेट आपरेटरों की मनमानी जगजाहिर है । हादसों के दौरान ओवरलोडिंग के कारण नुकसान कई गुणा बढ जाता है । जैसा की कुल्लू हादसे में भी देखने को मिला । वहीं, इन सारे मामले को लेकर अब मंत्री और मुख्यमंत्री आमने सामने नजर आ रहे हैं । क्योंकि एक तरफ जहां मंत्री महोदय ने इस बारे मामले में बस ट्रांसपोर्टर को पूरी तरह क्लीन चिट दे दी है ।
वहीं मुख्यमंत्री ने स्पष्ट कहा है कि जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है । ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि कैसे हादसों को रोका जाए । प्राइवेट बसों पर कैसे अंकुश लगाया जाए । सड़क पर सुरक्षा की गारंटी कैसे दी जाए । क्या सरकार अपनी इच्छाशक्ति दिखायेगी ?