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किसानों की आय दोगुनी करने और देश को जहर मुक्त करने के लिए प्राकृतिक खेती एकमात्र विकल्प

पी. चंद, शिमला |

हिमाचल का कृषि विभाग रासायनिक खेती और जैविक खेती से हटकर प्राकृतिक खेती की तरफ किसानों को ले जाने का प्रयास कर रहा है। इसी कड़ी में पद्मश्री सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती परियोजना में हिमाचल के 3369 किसानों को प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण दिया है। ये लोग प्राकृतिक खेती से भी जुड़ चुके हैं। इस बारे में जानकारी देते हुए प्रधान सचिव कृषि ओंकार शर्मा ने कहा कि अगले साल तक 50 हज़ार लोगो को प्राकृतिक खेती से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। ताकि किसानों की आय बढ़ाई जा सके ओर लोग ज़हर युक्त खाने से बच सकें।

उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा हो रहा है। 1 लाख 50 हज़ार करोड़ सब्सिडी खाद पर देती है जो घटकर अब 80 हज़ार करोड़ कर दी है। ये भी ख़त्म होनी चाहिए ताकि रासायनिक खेती का दुष्प्रभाव न पड़ सके। भारत में तीन तरह की रासायनिक खेती और जैविक खेती तो देश मे होती है लेकिन प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों को प्रशिक्षित कर रहे हैं। सुभाष पालेकर का कहना है कि रासायनिक खाद से भूमि की उर्वरता ख़त्म होती है जैविक खेती भी पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है। दोनों ही खेती में लागत ज़्यादा है जबकि उत्पादन कम हो रहा है।

किसान ने अपना बीज भी खत्म कर दिया अब जो बीज आ रहा है वह रासायनिक खेती के बिना पैदा ही नहीं हो सकता। विदेशी पूंजीवादी कंपनियों ने देश मे हरित क्रांति के नाम पर भारत को लूटा। रासायनिक का इस्तेमाल ग्लोबल वार्मिंग तेजी से हो रहा है। यदि इसी तरह ग्लेशियर पिघलते रहे तो देश चौपट हो जाएगा। कोई भी रासायनिक सेब खाना नहीं चाहता क्योंकि ये कैंसर का कारण है। खेती में कुछ नहीं डालना है। प्राकृतिक खेती की तरफ जाना आज की ज़रूरत है। तभी किसानों की आय दोगुनी हो सकती है। खेती योग्य भूमि कम हो रही है जनसंख्या बढ़ रही है ऐसे में नया विकल्प सिर्फ़ प्राकृतिक खेती है। जो किसान देश मे पालेकर खेती कर रहा वह आत्महत्या नहीं कर रहा है। कैंसर के 30 फ़ीसदी भारतीय , मधुमेह के 50 फ़ीसदी है ये सब बीमारियों का कारण रासायनिक खेती है।