पहाड़ों की रानी के नाम से विख्यात पर्यटन स्थल शिमला अब समस्याओं का शहर बनता जा रहा है। समस्याएं एक नहीं अनेक हैं। सबसे बड़ी समस्या यहां पार्किंग की हैं। लोग लोन लेकर गाड़ियां तो ख़रीद लेते हैं लेकिन पार्किंग न होने के चलते गाडियां सड़कों पर ही खड़ी कर देते हैं। जब भी शिमला में कोई हादसा हो जाता है या फ़िर वीआईपी को कोई समस्या सड़क में हो जाती है तो पुलिस प्रशासन को नींद से जगाया जाता है और कोर्ट से लेकर सरकार तक बिना मूल समस्या को सोचे समझे या तो गाड़ियों को हटाने के आदेश दे दिए जाते हैं। पुलिस को चालान करने का मौका मिल जाता है धड़ाधड़ चालान शुरू हो जाते हैं।
20 से 25 हज़ार की जनसंख्या के लिए बने शिमला की आबादी ढाई लाख पहुंच गई है। सड़कें ज्यादा बढ़ नहीं पाईं, पार्किंग बनती नहीं है, पानी लोगों को मिलता नहीं है, जाम यहां आम है और भीड़ बढ़ती जा रही है। जिम्मेदार सरकारें नहीं तो कौन है। जिन्होंने इस शहर को बचाने के लिए कोई सोच क्यों नही रखी? शिमला में कोई भी अनहोनी हो जाए जनता जितना गुस्सा हो जाए आख़िरकार चाहे सरकार हो कौर्ट हो या प्रशासन जनता को ही भुगतान करना पड़ता है। सरकार को राजनीति करनी है इसलिए शहर दिक्कतों से घिरे हैं। न्यायालय बन्द कमरों में अपने फैसले करते है इसलिए देश समस्याओं से जूझ रहे है। अफ़सर तो अफ़सर होते है उन्हें जनता की समस्या को सुनने का अवसर कहां है।
शिमला शहर की मूल समस्या की गहराई में आज तक कोई नही पहुंच पाया। जो व्यवस्था आदेश जारी करती है उनके घर पर तो पांच पांच गाड़ियां है । चलनी तो सभी सड़कों पर ही है। फ़िर उल्टे सीधे आदेश देने से पहले असल समस्या को दरकिनार कर लोगों की आंखों में धूल झोंकने का काम क्यों हो रहा है। शिमला में ही पंजीकृत गाड़ियों की संख्या 1 लाख 12 हज़ार है जो निरंतर बढ़ रही है। शिमला में लगभग 5000 गाड़ियों की पार्किंग की व्यवस्था है। ये व्यवस्था भी पर्यटकों के लिए है। अब एक लाख से ज़्यादा गाड़ियां सड़कों के किनारे नही तो ओर कहाँ खड़ी होंगी। क्या राजधानी शिमला में रहने वाला व्यक्ति कार में चलने का हकदार नही है? जो पानी, कूड़े, सड़क, सीवरेज, घर, ज़मीन और हर चीज़ का टैक्स देता है।
सरकारें और नगर निगम लगातार लोगों पर टैक्स तो लगाता रहता है। लेकिन, राजधानी में कभी लोगों को सबसे महंगा होने के बाबजूद पानी नहीं मिलता है। क्योंकि, यहां पहले होटलों में ठहरने वाले पर्यटकों की प्यास बुझानी है। सबसे ज़्यादा चालान शिमला के वाहन चालकों के होते हैं। क्योंकि शिमला में पार्किंग स्थानीय लोगों के लिए नहीं बल्कि पर्यटकों के लिए बनी है। वाहनों के कारण लगता जाम स्थानीय लोगों के लिए सिरदर्द रहता है। शिमला में सबसे ज़्यादा संख्ता कर्मचारी वर्ग की है जो पूरे प्रदेश को चला रहे हैं। उनकी क्या गलती है जो हर समस्या का खामियाजा भुगतते हैं।