हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक इतिहास पर गौर करें तो प्रदेश में चुनाव कभी जातिवाद पर आधारित नहीं रहे हैं। आमतौर पर दलित राजनीति से दूर रहने वाले राज्य हिमाचल में इस बार विधानसभा चुनावों में दलित कार्ड का खेल खेला जा रहा है। दलित वोटरों को साधने के लिए दोनों पार्टियां ‘दलित सम्मेलनों’ के आयोजन पर खास जोर दे रहे हैं।
बता दें हिमाचल प्रदेश की 25 प्रतिशत आबादी दलित है जिसको साधने में कांग्रेस और बीजेपी दोनों दल जोरशोर से जुट गए हैं। राज्य में 68 सदस्यीय विधानसभा में 20 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं।
50 से ज्यादा दलित सम्मेलन करा चुकी है बीजेपी
पीएम मोदी 3 अक्टूबर को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिला पहुंचे। थोड़ी देर में वे यहां प्रदेश के पहले अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) का शिलान्यास करेंगे। बिलासपुर की 3 लाख की आबादी में लगभग 1 लाख के करीब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग है।
प्रदेश में ‘50 प्लस’ मिशन को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने दलित सम्मेलनों की शुरूआत की। इन सम्मेलनों का आयोजन खासतौर पर ऐसे क्षेत्रों में किया जा रहा है जो सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं या जिन क्षेत्रों में दलितों की अच्छी खासी आबादी है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि प्रदेश में अब तक 50 ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया जा चुका है।
दलितों को लुभाने में कांग्रेस भी पीछे नहीं
विधानसभा चुनाव से पहले दलितों को लुभाने में कांग्रेस भी पीछे नहीं दिखना चाहती है। कांग्रेस ने सोलन जिले से दलित सम्मेलनों के आयोजन का कार्यक्रम शुरू किया है और यह कसौली, कुमारहट्टी में खास तौर पर देखा जा सकता है। इसके बाद सुबाथू में पार्टी ने एक और दलित सम्मेलन का आयोजन किया था। प्रदेश प्रभारी सुशील कुमार शिंदे दलित कार्यक्रमों पर खास जोर दे रहे हैं।