Follow Us:

संगठन में गाड़े हैं झंडे , अब चुनावी राजनीति की बारी: विकास

विकास चौहान |

हिमाचल प्रदेश के सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के टिकट से युवाओं का एक तबका ताल ठोकने के लिए बेताब है। अब मसला टिकट मिलने का है। इसी क्रम में NSUI के प्रदेश सचिव और गैहरा पंचायत प्रधान विकास वर्मा ने भी दावेदारी पेश की है। हालांकि, उनके अलावा यदुपति ठाकुर ने भी अपनी दावेदारी पेश की है।

इन दोनों युवा नेताओं के दावेदारी पेश करने से पूर्व में कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ रहे रंगीला राव के लिए अब राजनीतिक परिस्थितियां आसान नहीं होंगी।

विकास वर्मा की बात करें तो ये एक सामान्य परिवार से आते हैं और NSUI में कई सफलताएं हासिल की है। इसके अलावा जनरल कोटे से गैहरा पंचायत से सबसे कम उम्र के ग्राम-प्रधान भी हैं। विकास का दावा है कि उनके पास 6 पंचायतों का फुल सपोर्ट है।

विकास वर्मा की प्रोफाइल देखते हुए समाचार फर्स्ट ने उनसे टेलिफोनिक इंटरव्यू किया। पेश है उसका एक अंश-

समाचार FIRST: सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र से रंगीला राव कांग्रेस से टिकट के दावेदार हैं। उनके अलावा और भी युवा नेता टिकट की रेस में है। फिर आपको ही क्यों टिकट दिया जाए?

विकास वर्मा: अगर पार्टी मुझे टिकट देती है तो मैं दावा करता हूं कि पिछली 2 बार से मिल रही हार का सिलसिला थम जाएगा। मैं पार्टी को जीत दिला सकता हूं। मैंने एनएसयूआई में रहते हुए संगठन स्तर पर कई काम किए हैं और हमारे हिस्से में सफलताएं भी आई हैं। मंडी कॉलेज में तकरीबन 4 दशक बाद हमने NSUI का परचम लहराया था। इसके अलावा मैं जनरल कोटे से प्रदेश का सबसे कम उम्र का ग्रामप्रधान भी चुना गया। आज मैं गैहरा पंचायत से प्रधान हूं और इसके अलावा 6 पंचायतों का मुझे पूरा-पूरा समर्थन हासिल है।

समाचार FIRST: दूसरे युवा नेताओं से क्या गलतियां रहीं जो आप उसे नहीं दोहराएंगे। आप किस तरह से खुद को उनसे अलग पाते हैं?

विकास वर्मा: देखिए, सभी ने अपने स्तर पर कोशिश की है। लेकिन, असल बात थी लोगों के साथ जुड़ने की। यहां पर बहुत से युवा नेता आए लेकिन ज़मीनी स्तर पर लोगों की समस्याओं पर उनके दुख-सुख से खुद को जोड़ नहीं पाए। लेकिन, मैंने खुद को जनता के बीच रखा। उनके लिए संघर्ष किया। कई सालों का संघर्ष का ही नतीजा रहा कि लोगों ने मुझे सबसे कम उम्र में ही गांव का प्रधान बना दिया। युवा साथियों के स्नेह और बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैंने बड़े अंतर से जीत भी हासिल की।

मैंने सरकाघाट के युवाओं के लिए मंडी में सरकाघाट वेलफेयर स्टूडेंट एसोसिएशन भी बनाया था। ताकि, मंडी में पढ़ने आए छात्रों की दिक्कतों का समाधान करा सकूं। आज वे सारे छात्र मेरी कार्यशैली से वाकिफ हैं और मेरा साथ देने के लिए तैयार हैं।

समाचार FIRST: आपके यहां से संगठन से जुड़े और भी युवा चेहरे चुनावी ताल ठोकने के लिए तैयार हैं। क्या उनमें वह कुव्वत है जो आप गिना रहे हैं? 

विकास वर्मा: देखिए, संगठन में हर कोई अपना-अपना धर्म निभातार रहा है। लिहाजा, किसी पर मैं व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करूंगा। मेरा जो दायित्व रहा है उसे मैंने ईमानदारी से निभाया है। 14 साल तक पार्टी की तन-मन-धन से सेवा की है। पार्टी के वरिष्ठ लोगों ने भी मेरी कार्यशैली और मेरे समर्पण को देखा है। लिहाजा, मुझे यकीन है कि मेरिट के आधार पर अगर टिकट वितरण किया जाएगा तो मैं कहीं से चूकने वाला नहीं हूं।

समाचार FIRST: आपने दावा किया है कि आपको कई सारी पंचायतों का समर्थन है। अगर आपको फिर भी टिकट नहीं मिलता है तो आपका अगला कदम क्या होगा?

विकास वर्मा: अगर मुझे टिकट ना देकर रंगीला राव जी को टिकट दिया जाता है, तो मैं बतौर पार्टी का सच्चा सिपाही होने के नेता उनका समर्थन करूंगा। लेकिन, फिर से मैं कहना चहूंगा कि पिछले 2 बार से जिस तरह  पार्टी हार रही है, अगर टिकट मुझे मिलता है तो युवा साथियों के समर्थन और अपने बुजुर्गों के आशीर्वाद से इस क्रम को भी बदलके रख दूंगा।

सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की स्थिति

सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र में पिछले 2 बार से कांग्रेस को लगातार शिकस्त मिलती रही है। दोनों ही बार कांग्रेस ने रंगीला राव पर अपना दांव लगाया था। लेकिन, दोनों ही बार रंगीला राव से निराशा मिली। सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र मतदाताओं की कुल संख्या 76750 है।

2012 के चुनाव में बीजेपी को जहां 26,722 वोट मिले, वहीं कांग्रेस के हिस्से में 24,518 वोट आए। देखा जाए तो इसके पिछले चुनाव के मुकाबले 2012 में कांग्रेस शिकस्त के अंतर को कम किया था। क्योंकि उस दौरान बीजेपी ने 7 हजार से अधिक मतों से चुनाव जीता था।

हालांकि, इस बार परिस्थितियां दूसरी हैं। माना जा रहा है कि यहां से बीजेपी को फाइट देना आसान नहीं होगा। क्योंकि, इस बार हमेशा की तरह जो एंटी-इनकॉम्बेंसी का जो हवा चलती है, उसमें बीजेपी को लाभ मिल सकता है। वहीं, कांग्रेस में लगातार रंगीला राव को हार के बावजूद टिकट मिलने से एक धड़े में विरोध की सुगबुगाहट भी देखने को मिल रही है। लिहाजा, बीजेपी इस फूट का भी लाभ उठा सकती है।

अब मसला यहां फंस रहा है कि कांग्रेस किस चेहरे पर दांव लगाए। क्योंकि, युवाओं की नई कतार भी टिकट के लिए खड़ी है।