दो माह पहले राजधानी शिमला में झांझीडी हादसे ने सबको झकझोर कर रख गया था। दो बच्चियों सहित ड्राइवर की इस हादसे में मौत हो गई थी। जिस पर गुस्साए लोगों ने दर्जनों गाड़ियां तोड़ डाली थी। क्योंकि हादसे की वजह ही सड़क किनारे खड़ी की गई अवैध पार्किंग की गाड़ियां थी। उसके बाद पुलिस तीन-तीन टाइम यहां आती रही और गाड़ियों हटाने के लिए माइक से आवाज़ लगाती रही। गाड़ियों के चालान भी लगातार होते रहे।
धीरे धीरे पुलिस ने यहां आना कम कर दिया उसके बाद लोग फिर से सड़क किनारे गाड़ियां लगाने लग गए है। क्योंकि हादसे के बाद थोड़े दिन जागने के बाद हम फ़िर से आंखे मूंद लेते है ओर फ़िर किसी बड़े हादसे का इंतजार करते हैं। हादसे की जगह आनन-फानन सड़क के किनारे आस्थाई ड्रम भी लगाए गए उम्मीद थी कि यहां पैराफिट लगेंगे। लेकिन दो माह बाद कुछ नहीं हुआ। हमें हादसों से सबक लेकर काम करने की नहीं बल्कि भूल जाने की बीमारी है। इसलिए हम न सुधरते हैं न सुधरने की कोशिश करते हैं।
प्रशासन देख कर भी आंखे मूंदे रहता है। जनप्रतिनिधि वोट बैंक की राजनीति में फंसे रहते है। पहुंच वाले नियम तोड़ते है क्योंकि पैसे और धौंस से कानून को खरीदने का शोक पाले बैठे हैं। आम आदमी थोड़ी देर गुस्सा दिखाकर फ़िर रोजी रोटी में जुट जाता है। इसलिए शायद देश की बेहतरी के लिए किसी के पास समय नहीं।