47 साल पहले भारत और पाकिस्तान के बीच 3 जुलाई 1972 के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। ये समझौता शिमला में किया गया था। जिसकी गवाह आज भी वर्तमान राजभवन में मौजूद दो कुर्सियां और टेबल हैं जो शिमला समझौते की याद दिलाती हैं। राजभवन में मुख्य हाल के साथ दरवाज़े के पास ये कुर्सियां और टेबल रखे हुए हैं। जिनपर दोनों देशों के बीच समझौता हुआ था। यहां तक कि दोनों देशों के तिरंगे भी टेबल पर मौजूद हैं।
शिमला समझौते के बाद भारत ने 93 हजार पाकिस्तानी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया था। साथ में सेना द्वारा जीती गई पाकिस्तान की जमीन भी वापिस कर दी गई थी। ये भी तय हुआ था कि 17 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की स्थिति पहले जैसी ही रहेगी। भविष्य में दोनों सीमा रेखा का उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेंगे। दोनों देशों के बीच सौहार्द्र बनाए रखने के लिए आवागमन शुरू किया जाएगा। ये भी तय हुआ था कि दोनों देश आपस में बातचीत के जरिए कश्मीर से जुड़े विवाद सुलझाएंगे।
पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे। ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल तक जंग करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई लेकिन कोई नतीज़ा नहीं निकल सका। अंततः 3 जुलाई को ये समझौता हुआ था। बाबजूद इसके पाकिस्तान हर बार इस समझौते का उल्लंघन करता रहा है।