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लुप्त होती जा रही परंपरागत फसलें और जड़ी बूटियां, सरंक्षण के लिए 1 माह के भीतर पंचायत स्तर पर बनेगी समितियां

पी. चंद, शिमला |

पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में कई ऐसी परंपरागत फसलें और जड़ी बूटियां है जो पेट भरने के साथ-साथ दवाइयों का काम भी करती है। जिनमें कोदा, जौं, गुच्छी, नागछत्री, पतिस,  कूट, हरड़ ,बेहड़ा और आमला जैसी कई फसलें शामिल है। एक वक्त था जब ये चीजें हर घर में मिलती थी। लेकिन वक़्त बदलने के साथ लोग इसकी खेती से दूर हो रहे हैं। बाकी जड़ी बूटियों पर पतंजलि जैसे व्यवसायी हाथ साफ़ कर जाते है जिसका हिमाचल को कोई लाभ नहीं मिल रहा है।

इन फसलों के सरंक्षण एवं संवर्धन के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने पंचायत स्तर पर जैव विविधता प्रबंधन समितियों के गठन का काम शुरू किया है। जो इन फसलों और जड़ी बूटियों को बचाने का काम करेंगे। ये जानकारी निशांत ठाकुर संयुक्त सदस्य सचिव हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने दी। उन्होंने बताया कि ग्राम स्तर पर 753 बीएमसी का गठन चम्बा कुल्लू, मंडी, शिमला और सिरमौर जिलों में किया जा चुका है। अगले एक माह तक राज्य की सभी पंचायतों में इसके गठन का लक्ष्य रखा गया है।