राजधानी शिमला में लावारिस कुत्तों का आतंक ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है। आए दिन कुत्तों के काटने के मामले सामने आ रहे हैं। बाबजूद इसके नगर निगम शिमला या सरकार आजतक कुत्तों के आतंक से निपटने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बना पाई है। शिमला के अति व्यस्त रहने वाले माल रोड़ पर भी कुत्ते लोगों पर झपट पड़ते हैं। यहां 10 से 12 कुत्ते हमेशा झुंड में रहते हैं। मालरोड और रिज मैदान के अलावा शहर के उपनगरों में भी कुत्तों का आतंक है। न्यू शिमला, विकासनगर, खलीनी, पटयोग, जाखू, कृष्णानगर, छोटा शिमला आदि उपनगरों में सबसे ज्यादा लावारिस कुत्ते हैं। जो स्कूली बच्चों पर भी हमले कर देते हैं। अब तो रेलवे स्टेशन पर भी कुत्तों ने अपना कब्जा जमा लिया है।
2018 के निगम के आंकड़ों के मुताबिक़ शहर में दो हजार से ज्यादा आवारा कुत्ते हैं जिममें से 986 की नसबंदी की गई है। बचे हुए 1014 कुत्ते निगम के हाथ नहीं आए हैं। नियमों के तहत नसंबदी के बाद निगम केवल 10 दिन ही कुत्तों को अपने पास रख सकता है। उसके बाद उन्हें उसी जगह कुत्ता छोड़ना पड़ता है, जहां से उसे पकड़ा गया हो। ऐसे में यदि कोई कुत्ता खतरनाक भी हो जाए तो निगम केवल 10 दिन अपने पास रखकर उसे वापस वहीं छोड़ देता है, जहां पर उसका आतंक रहता है। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकार एवं निगम की उदासीनता के चलते कब तक बेगुनाह लोग कुत्तों के शिकार होते रहेंगे।