माता-पिता अपनी बेटी की शादी यह सोचकर करते हैं कि उनकी बेटी ससुराल में जाकर खुश रहे और सुखी रहे। लेकिन उन्हें क्या पता था कि आज उनकी बेटी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हो जाएगी। यह कहानी है एक ऐसी महिला की जो बुजुर्ग है और उसका न ही कोई मायके में है और न ही कोई ससुराल में है। ये दुःख भरी कहानी है जिला सिरमौर के गिरिपार दुर्गम क्षेत्र की पंचायत खुड गांव डबरोंग की महिला बेलमती की जो दिन-प्रतिदिन धक्के खाने को मजबूर है।
महिला की शादी हुए 40 साल हो गए हैं। जब महिला की शादी हुई थी तो उस समय वह 20 साल की थी। अपना नाम दर्ज़ करवाने के लिए कई बार पंचायत के चक्कर काट चुकी हैं। एक बार वह अपनी पंचायत सहायक कोशलिया से मिली तो उन्होंने आश्वासन दिया कि मैं आपका नाम दर्ज़ कर रही हूं। लेकिन बाद में वह ट्रांसफर करवा के चली गई।
ससुराल वालों ने घर से निकाला
बेलमती की उम्र 65 साल हो गई है और वह बीमारी से ग्रसित रहती हैं और इस समय उनकी हालत काम करने योग्य नहीं है। उनकी शादी को 40 साल गए हैं। जिस समय उनकी शादी हुई थी उस समय वह 20 साल थी। शादी के बाद जब वह ससुराल गईं तो ससुराल वालों ने उन्हें घर से निकाल दिया। जिसके बाद वह अपने मायके लौट आईं और वहीं पर रहने लगी। माता-पिता के गुजर जाने के बाद अब वह बेसहारा हो गई हैं।
पंचायत में नहीं है दर्ज़ नाम
शादी के बाद मायके में नाम काट दिया गया लेकिन ससुराल में नाम दर्ज़ होने से पहले ही उन्हें ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। आज वो अपना नाम दर्ज़ करवाने के लिए कई बार अपनी पंचायत और बीडीओ संगडाह के पास भी कई दफा चक्कर काट आईं हैं लेकिन उन्हें हर बार यही कहा जाता है कि कल आना या परसों आना। कोई भी उनकी बात को नहीं सुनता है और न उनका नाम दर्ज़ करता है।
नहीं है कोई सरकारी सुविधा
बेलमती का कहना है कि उनके पास किसी भी तरह की कोई सरकारी सुविधा नहीं है। न तो उनके पास घर है, न ही राशन-पानी। न बेलमती के पास बिजली है और न ग्रहणी योजना है। और तो और उनके पास वोटर कार्ड भी नहीं है और न कोई कमाने का सहारा है और न तो उनको कोई विधवा पेंशन लगी है।
बेलमती सरकार से विनती कर रही है कि या तो उन्हें कोई सुविधा दे दी जाए या तो जहर दे दिया जाए। उन्होंने स्टैम्प पेपर भी दे दिया कि मेरा नाम पंचायत में दर्ज़ किया जाए। उनका सरकार से अनुरोध है कि अगर मेरी विधवा पेंशन लग जाती है तो मैं भीख मांगने से बच जाती हूं।