हिंदू पंचांग के अनुसार करवा चौथ कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थई तिथि पड़ता है। इस बार करवा चौथ 17 अक्टूबर यानी आज है। आज सुबह से ही सुहागिन महिलाओं ने सरगी प्रथा के साथ व्रत शुरू कर दिया है। पूरे दिन निर्जला व्रत रहकर महिलाएं शाम को करवा माता की पूजा और कथा पढ़ने के बाद महिलाएं छलनी से चांद को देखकर अपने पति के हाथों पानी पीकर व्रत खोलेंगी। इस साल का ये व्रत कई मायनों में बेहद अहम और शुभ मंगलदायी है। इस साल 4 शुभ संयोग पड़ रहे हैं जो हिंदू पंचांग के अनुसार 70 साल बाद पड़ रहा है। इस दिन करवा माता की पूजा का विशेष महत्व है। करवा चौथ का व्रत बिना व्रत कथा के अधूरा माना जाता।
करवा चौथ व्रत कथा-
प्राचीन समय की बात है इंद्रप्रस्थ नाम के एक नगर में वेद शर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम लीलावती था। उसके सात पुत्र और वीरावती नामक एक पुत्री थी। युवा होने पर वीरावती का विवाह करा दिया गया। इसके बाद जब कार्तिक कृष्ण चतुर्थी आई तो वीरावती ने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन भूख-प्यास से वह चंद्रोदय के पूर्व ही बेहोश हो गई। बहन को बेहोश देखकर सातों भाई परेशान हो गए। सभी भाइयों ने बहन के लिए पेड़ के पीछे से जलती मशाल का उजाला दिखाकर बहन को होश में लाकर चंद्रोदय निकलने की सूचना दी। वीरावती ने भाइयों की बात मानकर विधिपूर्वक अर्घ्य दिया और भोजन कर लिया। ऐसा करने से कुछ समय बाद ही उसके पति की मृत्यु हो गई।
अपने पति के मृत्यु के बाद वीरावती ने दुखी होकर अन्न-जल का त्याग कर दिया। उसी रात को इंद्राणी पृथ्वी पर आई। ब्राह्मण पुत्री ने उनसे अपने दुख का कारण पूछा। इंद्राणी ने बताया कि तुमने अपने पिता के घर पर करवा चौथ का व्रत किया था, लेकिन वास्तविक चंद्रोदय के होने से पहले ही अर्घ्य देकर भोजन कर लिया, इसीलिए तुम्हारा पति मर गया। अब उसे पुनर्जीवित करने के लिए विधिपूर्वक करवा चौथ का व्रत करो। मैं उस व्रत के ही पुण्य प्रभाव से तुम्हारे पति को जीवित करूंगी। वीरावती ने बारह मास की चौथ सहित करवाचौथ का व्रत पूर्ण विधि-विधानानुसार किया। इससे प्रसन्न होकर इंद्राणी ने उसके पति को जीवनदान दिया।
करवा चौथ व्रत पूजा विधि-
करवा चौथ व्रत करने वाली महिलाओं को सुबह दैनिक क्रिया से निवृत होकर स्नान के बाद संकल्प लेकर व्रत शुरू करना चाहिए। इस व्रत में बिना पानी पिये और बिना कुछ खाए रहना चाहिए। शाम के समय पार्वती जी की प्रतिमा जिसमें गणेश जी उनकी गोद में विराजमान हो, ऐसी प्रतिमा को पूजन स्थल पर स्थापित करें। इसके पश्चात मां पार्वती को सुहाग की वस्तुएं अर्पित करें और उनका श्रृंगार करें। और भक्ति भाव से माता पार्वती की आराधना करें। व्रत के दौरान सुहागिन महिलाएं व्रत कथा सुनें। शाम के समय चंद्र दर्शन के बाद ही पति द्वारा जल और अन्न ग्रहण करें। अंत में पति, सास, ससुर का आशीर्वाद लेकर व्रत का समापन करें।