हिंदू मान्यताओं के अनुसार गोवर्धन पूजा कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन की जाती है। इस पूजा को लेकर ऐसी मान्यता है कि द्वापर में भगवान श्री कृष्ण ने अपनी तर्जनी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था। यह त्योहार भगवान कृष्ण द्वारा देवराज इंद्र को हराने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
दिवाली की सुबह गोवर्धन पूजा की जाती है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में गायों को लक्ष्मी का स्वरुप कहा गया है। इस दिन अलग-अलग स्थानों पर बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली जैसे उत्तसव भी मनाए जाते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार अन्नकूट या गोवर्धन की पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से शुरु हुई। इस साल गोवर्धन पूजा 28 अक्टूबर 2019 को यानि आज मनाई जाएगी। गोवर्धन पूजा का पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बड़ी धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है। आइए जानते हैं क्या है गोवर्धन पूजा का महत्व, और इसकी कहानी-
गोवर्धन पूजा की कहानी
गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। इस पूजा की शुरुआत द्वापर काल से हो गई थी। शास्त्रों के अनुसार इस पूजा को मनाने के पहले ब्रजवासी देवराज इंद्र की पूजा करते थे। लेकिन जब श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों को समझाया और कहा कि आप सभी लोग हर साल इंद्र की पूजा तो करते हैं लेकिन इससे आपको कोई लाभ नहीं होता है। इसलिए आप सभी को गौ धन को समर्पित गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए
इंद्र ने ब्रजवासियों को किया डराने का प्रयास
जब भगवान कृष्ण की बातों को मानकर गोकुल वासियों ने इंद्र की पूजा बंद कर दी और गोवर्धन की पूजा शुरु कर दी। तो इस बात से इंद्र बहुत नाराज हो गए और उन्होंने अपनी अवमानना के लिए गोकुल वासियों को दंड देने का फैसला किया। क्रोध से भरे इंद्र ने मेघों को आदेश देकर गोकुल में बारिश शुरु कर दी। बारिश इतनी भयंकर की थी कि सारे गोकुल में त्राहि-त्राहि मच गई।
कृष्ण ने उंगली पर किया गोवर्धन को धारण
इंद्र ने भारी बारिश करके जब पूरे गोकुल को जलमग्न कर दिया तो लोग प्राण बचाने के लिए भगवान की प्रार्थना करने करने लगे। भगवान श्रीकृष्ण इंद्र की मूर्खता पर मुस्कुराए और गोकुलवासियों को इंद्र के कोप से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी तर्जनी अंगली पर धारण कर लिया।
गोकुल वासियों ने 7 दिन तक ली गोवर्धन की शरण
इंद्र के आदेश पर प्रलय के मेघ सात दिन तक लगातार गोकुल में भारी बारिश करते रहे। लेकिन गोवर्धन पर्वत के नीचे मौजूद ब्रजवासियों पर पानी की एक बूंद भी नहीं पड़ी। कृष्ण और इंद्र के बीच जारी इस लड़ाई को बढ़ता देख परम पिता ब्रह्मा ने इंद्र को बताया कि पृथ्वी पर भगवान हरि विष्णु ने कृष्ण के रुप में अवतार लिया है और तुम उनसे लड़ रहे हो। ब्रह्मदेव की ये बात सुनकर इंद्र बहुत लज्जित हुए और अपने किए के लिए भगवान कृष्ण से क्षमा मांगी।
कृष्ण ने गोकुल वासियों को दिया अन्नकूट पर्व मनाने का आदेश
इंद्र के क्षमा मांगने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोकुल वासियों को हर साल गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाने का आदेश दिया। तब से लेकर आज तक ये प्रथा कायम है। हर साल गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का त्योहार बड़े हर्षोल्लास के साथ घर-घर में मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा का महत्व
ऐसा माना जाता है कि ये उत्सव खुशी का उत्सव है और इस दिन जो दुखी रहेगा तो वो साल भर दुखी ही रहेगा। इस दिन खुश रहने वाला व्यक्ति वर्ष भर खुश रहेगा। इसलिए इस गोवर्धन पूजा करना बहुत ही जरूरी है। गोवर्धन पूजा को प्रकृति की पूजा भी कहा जाता है। क्योंकि भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को प्रकृति को उसके योगदान के लिए पूजने का आदेश दिया था।